कुंडलियाँ छंद

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विधान

एक दोहा +एक रोला छंद से बने छंद को कुंडलियां छंद कहते हैं। इसमें छह चरण होते हैं।दोहा के विषम चरणों में १३-१३ और सम चरणों में ११-११मात्राएं होती हैं समचरण सम तुकांत होते हैं रोला के विषम चरणों ११-११ मात्रा चरणांत २१से होता है।सम चरणों १३-१३मात्रा होती हैं  चरणांत २२ से होता है।


१.महिमा

महिमा मंडन कर रहे,सत्ता की है चाह।

ओछी बातें कर सदा,जन की रोकें राह।

जन की रोकें राह, करें बस दोषारोपण।

धर्म-जाति मतभेद,करें सबका ये शोषण।

देख दशा निज देश,घटाते उसकी गरिमा।

बीज फूट का डाल,बताते खुद की महिमा।


२.

महिमा मेरे देश की, अद्भुत अतुल अपार।

राम-कृष्ण बसते यहाँ,ज्ञान भूमि आगार।

ज्ञान भूमि आगार,वेद पुराण श्री गीता।

रामचरित गुणगान,कृष्ण की भक्ति पुनीता।

कहती अभि कर जोड़,बढ़ाएँ इसकी गरिमा।

संस्कृति का रख मान,विश्व में बढ़ती महिमा।


३.बालक

बालक संस्कारी बनें,रखें हमेशा ध्यान।

चलें सदा सद् मार्ग पर,और बनें गुणवान।

और बनें गुणवान,लक्ष्य मनचाहा पाएँ।

उत्तम रखें चरित्र,देश का मान बढ़ाएँ।

कहती अभि हिय बात,यही भावी के पालक।

करें राष्ट्र निर्माण,बनें ऐसे सब बालक।


बालक नींव भविष्य की, पाएँ समुचित ज्ञान।

उचित मिले वातावरण,सीखें संयम ध्यान।

सीखें संयम ध्यान,करें मर्यादा पालन।

पाएँ अपना लक्ष्य,सुखद जीवन संचालन।

कहती अभि हित देख,भटक कर बनते घालक।

दुर्गुण से रख दूर, बनें सब उत्तम बालक।


५.विचलित

विचलित होता उर सदा,करता उनको याद।

अंतिम यात्रा पर गए,कैसे हो संवाद।

कैसे हो संवाद,पीर आँखों से झरती।

हिय में उठती हूक,हाथ मलती क्या करती।

कहती अभि हिय बात,सदा से यह है निश्चित।

नश्वर ये संसार ,नहीं होना है विचलित।।


विचलित जनता हो रही,बढ़ता भ्रष्टाचार।

काम-काज होते नहीं,बुरा करें व्यवहार।

बुरा करें व्यवहार,मिले कब जन अधिकारी।

भटकें दर-दर लोग,कृषक की खुशियाँ हारी।

कहती अभि यह देख,लाज इनको कब किंचित।

बिगड़े अब हालात,देख मन होता विचलित।।


"शिक्षक"

१.

शिक्षक धर्म निभाइए,लिए समर्पण भाव।

पढ़े-लिखे उन्नत बनें,बालक के मन चाव।

बालक के मन चाव,स्वावलंबी बन जाएँ।

दुर्गुण से रह दूर,देश का मान बढ़ाएँ।

कहती अभि हिय बात,बने वह ऐसा वीक्षक।

चहुँमुख देता ध्यान,सफल मानो तब शिक्षक।

२.

देता शिक्षा है सदा,करे साक्षर देश।

लेकिन शिक्षक भूमिका,निर्मल हो परिवेश।

निर्मल हो परिवेश,छात्र मन मिटे अँधेरा।

बाहर भीतर चोट,दूर जो अवगुण घेरा।

अभि चहुँमुखी विकास,देश का वही प्रणेता।

शिक्षा से संस्कार,सदा शिक्षक ही देता।



अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 31 अगस्त 2025 को लिंक की गई है....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. महिमा मेरे देश की, अद्भुत अतुल अपार।

    राम-कृष्ण बसते यहाँ,ज्ञान भूमि आगार।

    ज्ञान भूमि आगार,वेद पुराण श्री गीता।

    रामचरित गुणगान,कृष्ण की भक्ति पुनीता।

    कहती अभि कर जोड़,बढ़ाएँ इसकी गरिमा।

    संस्कृति का रख मान,विश्व में बढ़ती महिमा।
    बहुत ही सुन्दर 👍

    जवाब देंहटाएं

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