कान्हा अब तो आजा
कान्हा अब तो दर्श दिखा जा
मेरी बिगड़ी तू ही बना जा
मैं ढोता पाप की गठरी
जग भटकूँ राह बता जा
अब कितनी परीक्षा मेरी
मिलने में कितनी देरी
भव डूब रही मेरी नैया
ज्ञान की जोत जला जा
मैंने पाप किए नहीं सोचे
बस बात यही मन कोंचे
मन में छाया अँधियारा
तम घेरे दुख मोहे दोंचे
तूने दानव कितने मारे
गोकुल के भाग संवारे
मैं भाव भक्ति ना जानूँ
अँखियन अश्रु के धारे
जब काल खड़ा मेरे आगे
भय लगता प्राण भी भागे
तब याद मुझे तुम आए
हम कितने बड़े अभागे
मैंने रो रो तुझे पुकारा
स्वार्थ का जीवन सारा
तुम दानी दीन दयालु
मैं फिरता मारा मारा
हे बाल कृष्ण जगदीश्वर
जग पीड़ित है विश्वेश्वर
मद माया मोह सतावे
तू अपना रूप दिखा जा
तुम भाव भक्ति के भूखे
हम पापी भाव भी सूखे
पर तेरे ही हम बालक
दे दर्शन गलती भुला जा
हे कान्हा अब तो आजा...
अभिलाषा चौहान
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