रोला छंद --आह्वान








संकट का हो काल,धैर्य अपना मत खोना।

असफल होकर आप,कभी विचलित मत होना।

करते रहो प्रयास,कर्म भूमि ये  जीवन।

फल की चिंता छोड़,सौंप दे अपना तन-मन।


घेर खड़ा हो काल,डटे रहना तुम रण में।

साहस धीरज शौर्य,अडिगता हो बस प्रण में।

कंटक पूरित मार्ग, नहीं हो सुविधा कोई।

वीर वही है देख,आस जिसने ना खोई।।


सहज कहां संसार,मिली कब मंजिल ऐसे।

तपता देखो सूर्य,जले ये धरती कैसे।

कंटक बाधा बीच,सुमन देखो खिल जाए।

भय को पीछे छोड़,तुझे मंजिल मिल पाए।


पथिक भटकना छोड़,त्याग दे सारी माया।

सीमित काल विशेष,क्षीण पड़ती है काया।

जीवन का उद्देश्य,तुझे अब पाना होगा।

छोड़ेगा कब काल,भूल जा क्या है भोगा।


घेर खड़े तूफान,कभी मत तू घबराना।

अपने प्रण से आज,जीत तू बाजी जाना।।

छुपे बादलों बीच, सूर्य फिर भी कब छुपता।

चंद्र अमावस लुप्त, पूर्णिमा पूरा दिखता।।


खंदक खाई कूप,मरूस्थल घेरे कोई।

बुद्धि से ले काम,राह निकलेगी सोई।।

मन में दीपक आस,अगर जलता रहता है।

उम्मीदों का फूल,सदा खिलता बढ़ता है।।


प्रण का सारा खेल,खेल ये जीवन सारा।

मन से माने हार,वही जीवन भी हारा।।

करना है संघर्ष,अगर जीना है ढंग से।

उर में हो बस हर्ष,भरो जीवन को रंग से।।



अभिलाषा चौहान 





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