आ गई कैसी घड़ी...!!
एक कली कोमल सी
टूट कर बिखरी पड़ी
फूल बनने से ही पहले
आ गई कैसी घड़ी
कौन है वो दरिंदे
जो थे इतने बेरहम
पंखुड़ियां नोचते हुए
ना उन्हें आई शरम
स्वप्न बिखरे उस कली के
झर गईं आंसू लड़ी
रो रहे पौधे सभी वो
जिनकी थी वो लाड़ली
दर्द में थी चीखती वो
जो कभी नाजों पली
कौन बैठे घात में थे
आंख किनकी थी गड़ी
कितना तड़पी वो कली
जब नोंच कर फेंका गया
वो दरिंदे जानवर थे
जिनमें करुणा ना दया
वहशियों ने रौंद डाला
टूटी साँसों की कड़ी।
अभिलाषा चौहान
आवाज़ उठाना जरूरी है ताकि इंसानियत मायूस न हो,आक्रोशित अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी बिल्कुल, लेकिन आवाज समय के साथ कहीं गुम हो जाती है स्थिति वैसी ही रहती है
हटाएंसहृदय आभार सखी सादर
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते' का झूठा दंभ भरने वाले देश में बार-बार होने वाली दुखद, शर्मनाक और अमानवीय घटनाएं !
जवाब देंहटाएंजी आदरणीय,
हटाएंऐसे अमानवीय कृत्य पता नहीं कब तक होते
रहेंगे..!!कब नारी स्वयं को
सुरक्षित महसूस करेंगी..कब बदलेगी घृणित मानसिकता
सहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हृदयविदारक
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर मार्मिक सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंफिर भी वोट फॉर भेड़िये
जवाब देंहटाएंओह अभिलाषा जी, आपकी रचना अंतस को झझको gai! ना जाने कितनी पीड़ा सही होगी अभागी बेटी ने! उसे तो आँसू बहाने का समय भी नही मिल पाया होगा🙏😞
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना प्रिय सखी अभिलाषा जी ।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी...
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