मुर्दे




अभी तक सुना था कि

होता है नरक...!!

मैंने देखा नरक को...!!

रिश्तों के नाम पर

जुटे स्वार्थी लोग

अपनी लोभ-पिपासा के लिए 

लाश के पास चिल्लाते

समझ से परे

मरा कौन था....?

वो जो भूमि पर पड़ा था

जड़ निर्जीव...!!

या जो लड़ने को खड़ा था

आत्मा से रहित निर्जीव 

भावनाशून्य....!!

मैं अवाक...?

संवेदनाशून्य इस जगत में 

चिता की अग्नि पर

स्वार्थ की रोटियां सेंकते

ये मुर्दे आज 

हर घर में मौजूद हैं ..!!

जिनके अंदर बसा है मरुस्थल

जिनकी अंदर की नदी

सूख गई है...!!

पेट की आग इनके लिए 

इतनी बड़ी है...!!

लाश भी इनके सवालों 

पर बेबस पड़ी है ...!!

सिसकती है मृतात्मा 

इन पापियों के लिए 

मैंने क्या कुछ ना किया

क्यों ना स्वार्थी बन जिया

ये क्या जाने किसी का दर्द

पत्थर से भी गए-बीते

संस्कार से रहित

भौतिक संपत्ति का लालच

बना देता है इन्हें अंधा

ये अंधे जौंक बनकर 

चूसते हैं रक्त

और एक दिन मर जाते हैं 

इनका जीवन नहीं आता

किसी के काम

ये मुर्दे जो स्वर्ग को 

बना देते हैं नरक....??


अभिलाषा चौहान 


टिप्पणियाँ

  1. लोग ऐसे ही होते हैं जोंबी ( जोंक) ।
    सम्पूर्ण भारत में 142 करोड़ लोग हैं , युवा सबसे ज्यादा हैं ।
    सबको निज हितों की रट है।
    भारत में अब को कोई बुद्ध, कृष्ण , महावीर, गोरख, कबीर , रैदास , नानक अब नहीं होता । धरती बंजर है, बंजर हैं भावनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 02 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  3. कितनी गूढ़ बात कह डाली चंद पंक्तियों में। भौतिकवाद में सभी दिखावे में जी रहे। रिश्ते सिमट से गए हैं। स्वार्थ के वशीभूत लोगों में संवेदनाएं और भावनाएं दम तोड चुकी हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बिल्कुल सही कहा आपने रूपा जी, संवेदना हीन लोग कूपमण्डूक होते हैं, उन्हें अपने से इतर कोई दिखाई नहीं देता। सहृदय आभार आपका सादर

      हटाएं
  4. बेहद संवेदनशील रचना। वाकई आज की हकीकत है ये ।

    जवाब देंहटाएं

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