क्या भूलूं क्या याद करूं!!
क्या भूलूँ क्या याद करूं
कैसे मन में अब धीर धरुं
सूना जग सूना मन
तुमसे पाया जीवन धन
छाया बनकर साथ रहे
पीर कहे अब किससे मन।
क्या भूलूं.................?
छूटा ममता का आंचल
क्रूर कठिन आया ये पल
छिना पिता का भी साया
छलक रहे आंसू छल-छल।
क्या भूलूं....................?
सागर दुख का लहराया
छाई अमावस की छाया
खड़ी अकेली सोचूं मैं
हे प्रभू कैसी ये माया!!
क्या भूलूं......................?
मां की ममता क्या छूटी
खुशियां सारी सब रूठी
पिता बिना बेवश सी मैं
विपदाएं आकर टूटीं !!
क्या भूलूं........................?
जीवन लगता तपती धूप
सूख गए अब मन के कूप
टूट गए सारे बंधन
जग ने दिखाया ऐसा रूप!!
क्या भूलूं.........................?
मात-पिता सा प्रेम कहां
लुटा-लुटा सा लगे जहां
रीता-रीता सा है जीवन
कौन करे भरपाई यहां !!
क्या भूलूं........................?
रिश्तों के कड़वे रूप दिखे
जिनमें स्वारथ के लेख लिखे
इंसान का कितना मोल यहां
जिंदों में मुर्दे खड़े दिखे!!
क्या भूलूं.......................?
हृदय में जिनके लोभ गड़ा
आंखों में मद भी रहा अड़ा
पत्थर भी जिनसे शर्मिंदा
शव रोए देखो वहीं पड़ा।
क्या भूलूं.........................?
माया के सारे हैं नाते
जीवन में केवल दुख लाते
जितना जोड़ो वो भी कम है
मरकर भी सुख कब पाते!!
क्या भूलूं...........................?
साथ कहां कोई रहता
सत्य सदा ये ही कहता
पर मूरख मन माने ना
उर ये पीर कहां सहता।
क्या भूलूं...........................?
अभिलाषा चौहान
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 30 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
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