धूलि चरणों की.....
धूलि चरणों की लगाए
और समझे जिसे चंदन
सौंपती सर्वस्व अपना
देव सदृश्य करती वंदन
है कहाँ अस्तित्व उसका
नाम भी अपना मिटाती
माँग का सिंदूर प्यारा
साथ चले जैसे साथी
देखती नित एक सपना
पुष्प जैसा खिले उपवन।
वेदना मन में छुपाए
जो धरा सा धीर धरती
शूल आँचल में समेटे
हर्ष की बरसात करती
मारती रहती सदा मन
कौन करता इसका मंथन।
आँख में अम्बुद छिपाए
नाचता नित हास्य मुख पर
प्रेम की साकार प्रतिमा
वार देती सुख दुखों पर
यूँ हथेली रोक लेती
चूड़ियों का मौन क्रंदन
मौन रहती देखती सब
जो धुरी परिवार की है
है समर्पित तन औ मन से
दे रही संस्कार जो है
त्याग का कौन मोल समझे
लौह बनती जो है कंचन।
अभिलाषा चौहान
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सहृदय आभार सादर सखी
हटाएंवाक़ई परिवार की धुरी है नारी, बहुत सुंदर शब्दों में अपने नारी जाति के महत्व और गरिमा को व्यक्त किया है
जवाब देंहटाएंआपको महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सहृदय आभार सादर
बहुत बहुत सुन्दर सरानीय रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है
हटाएंदेखती नित एक सपना
जवाब देंहटाएंपुष्प जैसा खिले उपवन।
बस यही सपना और यही कामना लिए सींचती आई है नारी युग-युग से इस सांसारिक उपवन को
बहुत ही लाजवाब ।
आपको महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सहृदय आभार सखी सादर
जी अभिलाषा जी, नारी के त्याग का मोल कभी समाज और परिवार समझ नहीं पाया। फिर भी नारी परिवार और समाज का वो मजबूत स्तंभ है जिस पर दोनों टिके हुए हैं! बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। महिला दिवस पर शुभकामनाएँ और प्यार ❤️🙏
जवाब देंहटाएंआपको भी हार्दिक शुभकामनाएं सखी आपका साथ आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया सदैव ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत है रचना को आपकी टिप्पणी ने सार्थक कर दिया सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार हरीश जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार मनोज जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएं