मेरे मोहन
मेरे मोहन माधव मतवाले
तेरे कुंतल काले घुंघराले
इस सृष्टि का आधार हो तुम
करूणा जल की रसधार हो तुम
मैंने सौंप दिया सब है तुमको
ये तुम जानो या मैं जानूं....
तेरे रूप की श्यामल देख घटा
मेरे मन का अंधकार छटा
तेरा प्रेम बरसता जीवन में
तू ही तू है बस अब मन में
मैंने सौंप दिया है सब तुमको
ये तुम जानो या मैं जानूं....
ये नैना कजरारे न्यारे
हम तो अपना ही दिल हारे
अब तुम श्रृंगार हो जीवन का
सुध भूल चुके हैं इस तन का
मैंने सौंप दिया है सब तुमको
ये तुम जानो या मैं जानूं.....
हम देख नहीं थकते तुम को
तुम भूल गए हो क्या हम को
कब आओगे मोहन प्यारे
पथ देख-देख कर हैं हारे
मैंने सौंप दिया है सब तुमको
ये तुम जानो या मैं जानूं.....
ये जीवन व्यर्थ हुआ तुम बिन
पल घड़ियां बीती दिन गिन गिन
पद पंकज की धूल हैं हम
नित करते कितनी भूल हैं हम
मैंने सौंप दिया है सब तुमको
ये तुम जानो या मैं जानूं.....
अभिलाषा चौहान
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंये जीवन व्यर्थ हुआ तुम बिन
जवाब देंहटाएंपल घड़ियां बीती दिन गिन गिन
पद पंकज की धूल हैं हम
नित करते कितनी भूल हैं हम
मैंने सौंप दिया है सब तुमको
ये तुम जानो या मैं जानूं.....
बेहतरीन रचना....
सहृदय आभार हरीश जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंकान्हा के लिए ऐसा समर्पित भाव... बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
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