जमी है बर्फ

 



बर्फ आसमान से नहीं गिरती

बूंद ही बनती है बर्फ

धरती तक आते-आते

आजकल हर ओर

जमी है बर्फ...!!

इस बर्फ ने दबाया

उबलता लावा

जमा दिया है रक्त

जम गईं वे झीलें

जहां संवेदन थी लहरें 

छीन ली रौनकें जिंदगी की

सर्वत्र है यही बर्फ....

जो जड़ है

जड़ता का यह साम्राज्य

जिससे चल रहा है अब भी

अस्तित्व का संघर्ष

प्रयास भी कि

कभी यह बर्फ पिघल जाए

और निकल आएँ अंकुर

लहलहाने लगे जिंदगी

चमकने लगे सत्य सूर्य की तरह

यह बर्फ जो जरुरी है

प्रकृति के लिए .....

लेकिन दुश्मन है मानवीयता की

इसके जमने से 

जीवंत होती निष्क्रियता

परिवर्तन की चाह होती बेमानी 

बर्फ की सतहों में

दबे वायरस सक्रिय हैं 

मिटाने को इंसानियत

बुराई इसीलिए है शक्तिमान

अच्छाई के समक्ष

बर्फ में दबी अच्छाई

हो जाती है दुर्बल

भूल जाती है अहमियत अपनी।



अभिलाषा चौहान 




टिप्पणियाँ

  1. प्रकृति और मनोभावों का सुन्दर चित्रण

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 7 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह अभ‍िलाषा जी, उम्दा तरीके से बर्फ को बर्फ कर द‍िया आपने...वाह...जीवंत होती निष्क्रियता

    परिवर्तन की चाह होती बेमानी

    बर्फ की सतहों में

    दबे वायरस सक्रिय हैं ...वाह...वाह

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार अलकनंदा जी।आपने रचना के मर्म तक पहुंच रचना को सार्थक कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
  5. बर्फ पिघलने लगी, सूर्य की ऊष्मा से.बधाई, अभिलाषा जी.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई ,सादर

      हटाएं
  6. बर्फ में दबी अच्छाई

    हो जाती है दुर्बल

    भूल जाती है अहमियत अपनी।

    प्रकृति के बदलते स्वरूप और मानवीय संवेदना को बड़ी ही खूबसूरती से समायोजित किया है आपने सखी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया ही रचना के मर्म को निखारकर उसे सार्थक कर रही है सखी आपका हृदयतल से आभार सादर

      हटाएं

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