हे ईश्वर....
हे ईश्वर!
मुझमें है तेरा अंश
तूने चुना है मुझे
संघर्ष के लिए
तेरा मुझमें होना
यही है सर्वस्व
मेरे होने का क्या महत्व
महत्व है तेरे होने का
तू साथ है
पग-पग पर विश्वास है
इस मायावी दुनिया में
भ्रमित मन
जब भी तुझे भूलता है
तभी उस अहम को
एक पल में करा देता है
नगण्यता का अहसास
करा देता है कर्तव्य बोध
चल पड़ते हैं कदम
उन कंटीली राहों पर
जिसे चुना है तूने
सिर्फ मेरे लिए
हे ईश्वर...!
तेरा बोध
दुख के समंदर में
देता है सहारा
बस तू ही है मेरी आस
जन्मों की प्यास
मन का उजास।
अभिलाषा चौहान
ईश्वर में आस्था के साथ अपने कर्म पर विश्वास रखते हुए ही मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ अपनी भौतिक उन्नति भी कर सकता है.
जवाब देंहटाएंईश्वर में आस्था ही परमार्थ को रास्ता
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०७-०५-२०२३) को 'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक -४६६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर रचना|
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह! सखी ,सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता
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