नींद चुराई है किसने
रात अमावस की है काली
दीप बुझाए हैं किसने
घृणा-द्वेष की दीवारों से
नींव हिलाई है जिसने।
कुरुक्षेत्र लगता मरघट सा
डाली के सब पुष्प झरे
वंशबेल की होगी समृद्धि
कौन कामना भला करे
शमशीरों की रक्त पिपासा
देख जगाई है इसने
घृणा-द्वेष की दीवारों से
नींव हिलाई है जिसने।
आँसू की बहती नदियों में
कोख उजड़ती है कितनी
सूनी माँगों में सपनों की
जली चिताएँ हैं उतनी
सोच-सोच भयकंपित होती
काल-व्याल लगता डसने
घृणा-द्वेष की दीवारों से
नींव हिलाई है जिसने।
मस्तक पर है श्वेद छलकता
रोम-रोम फिर काँप उठा
चुभने लगा अजब सन्नाटा
संकट हिय अब भाँप उठा
आज सुभद्रा की आँखों से
नींद चुराई है किसने
घृणा-द्वेष की दीवारों से
नींव हिलाई है जिसने।
अभिलाषा चौहान
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 4 जनवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
हटाएंशुभकामनाएं नववर्ष पर | सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर आप की प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। आपको भी नववर्ष की अनंत शुभकामनाएं
हटाएंबहुत सुन्दर रचना आदरणिया जी
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