कविता का कल्पित कानन






चहक रहीं चिड़ियाँ नीड़ों में

किरणें थिरक रही आँगन

मलयानिल मदमाता बहता

पुष्प खिलें हैं मनभावन।।


कलियाँ इठलाती डालों पे

लता वृक्ष से प्रणय करें

भ्रमर डोलते प्रेमी बनकर

तितली कैसे नृत्य करें 

चित्रलिखित सी मैं बन जाऊँ

मन में बरस रहा सावन

चहक रहीं....................।


चित्रकार की देख चित्रकृति 

करती हूँ नित अभिनंदन

दृष्टि पटल से पलक उठी फिर 

गिरती सी करती वंदन

वसुधा नववधु सी मुस्काए

घर आए जैसे साजन

चहक रहीं..................।


नवजीवन के फूटे अंकुर

तिनका-तिनका झूम रहा

अंतस में उमड़ा आकर्षण

नयनों से फिर प्रेम बहा

शब्द हृदय में करें ठिठोली

कविता का कल्पित कानन.

चहक रहीं...................।


अभिलाषा चौहान 


टिप्पणियाँ

  1. चित्रकार की देख चित्रकृति

    करती हूँ नित अभिनंदन

    दृष्टि पटल से पलक उठी फिर

    गिरती सी करती वंदन

    बहुत खूब!अति मनभावन सृजन सखी,नव वर्ष आपके समस्त परिवार के लिए मंगलमय हो 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी सादर आपको भी नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। नववर्ष आपके लिए मंगलकारी हो।

      हटाएं
  2. नवजीवन के फूटे अंकुर

    तिनका-तिनका झूम रहा

    अंतस में उमड़ा आकर्षण

    नयनों से फिर प्रेम बहा

    शब्द हृदय में करें ठिठोली

    कविता का कल्पित कानन.

    चहक रहीं...................।
    सकारात्मक भाव सज्जित कार्य सुंदर गीत ।

    जवाब देंहटाएं

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