आत्म-मंथन कर सको तो...






आत्म-मंथन कर सको तो,

भूल भी तुमको दिखेगी।

धुंध जो छाई छटेगी...


कल्पना के पंख ऐसे,उड़ रहे जिनकी वजह से।

सत्यता को भूल बैठे,भटकते अपनी जगह से।

कर्म का फल ही मिलेगा,सीख गीता ने सिखाई।

धर्म को जिसने भुलाया,पीर बस बदले में पाई।


लक्ष्य चिंतन कर सको तो,

राह भी तुमको दिखेगी।

धुंध जो छाई छटेगी.…


हो सफल हर बार ऐसा,भ्रम कभी मन में रखों क्यों ?

ठोकरें दे सीख देती,देख उनको डर रहे क्यों ?

सीप में मोती पले ज्यों,स्वप्न मन में पल रहें हैं।

कंटकों के बीच देखो,पुष्प कैसे खिल रहें हैं।


साधना यदि कर सको तो,

साध पूरी हो रहेगी।

धुंध जो छाई छटेगी


हे पथिक!ये ध्यान धर लो,पंथ तो परिचित न होगा।

शृंग, खंदक ,खाई होंगे,प्रेम न तुमको मिलेगा।

छत भी सिर से छिनेगी,और दुख झोली भरेंगे।

ठान लो अब जीतना है,दिन तुम्हारे भी फिरेंगे।


और संयम रख सको तो,

जिंदगी फिर से हँसेगी।

धुंध जो छाई छटेगी....


अभिलाषा चौहान 


टिप्पणियाँ

  1. आत्ममंथन अथवा आत्मावलोकन संसार के कठिनतम कार्यों में सम्मिलित है. अपनी त्रुटि को देखना एवं स्वीकार करना सामान्य व्यक्तियों हेतु सहज नहीं. आपकी कविता निश्चय ही प्रशंसनीय है एवं अनुकरणीय भी.

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  2. कर्म का फल ही मिलेगा,सीख गीता ने सिखाई।

    धर्म को जिसने भुलाया,पीर बस बदले में पाई।
    बहुत सटीक सार्थक एवं सारगर्भित
    लाजवाब सृजन ।

    जवाब देंहटाएं

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