साधन बने मदारी
भोग रहा दुख पाने को सुख
सच्चाई न विचारी
कौड़ी-कौड़ी जोड़-जोड़ कर
बनके रहा भिखारी
काल भागता अपनी गति से
बांध सका कब कोई।
उम्र बीतती भागे सरपट
चैन नींद कब सोई
पाँव पसारे चादर बाहर
प्रेम-प्रीत सब हारी।
सोच मशीनी बनती सबकी
भावों का है सूखा
लिप्साएँ हों मन पर हावी
कैसा बनता भूखा
बंदर जैसे मानव नाचे
साधन बने मदारी।
माया के सब साथी जुड़ते
समझौतों को जीते
संकट में मुँह फेर खड़े सब
अंत समय कर रीते
जीवन अब संग्राम बना है
खेलें खेल जुआरी।
अभिलाषा चौहान
जोड़-जोड़ मर जाएंगे,
जवाब देंहटाएंमाल जमाई खाएंगे.
सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 19 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएं'...उम्र बीतती भागे सरपट
जवाब देंहटाएंचैन नींद कब सोई
पाँव पसारे चादर बाहर
प्रेम-प्रीत सब हारी।' - अकाट्य सत्य महोदया!...सुन्दर रचना
सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंवाह! सखी ,क्या बात है ...!इस जोड तोड में ही जीवन व्यतीत हो जाता है .. ..
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंकाल भागता अपनी गति से
जवाब देंहटाएंबांध सका कब कोई।
उम्र बीतती भागे सरपट
चैन नींद कब सोई
वाह!!!!
एकदम सटीक अद्भुत एवं लाजवाब ।
आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया हेतु सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसोच मशीनी बनती सबकी
जवाब देंहटाएंभावों का है सूखा
लिप्साएँ हों मन पर हावी
कैसा बनता भूखा
सच सखी, सचमुच हम मशीन ही बन चुके हैं बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना 🙏
आपकी प्रेरणादायक उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंवाह्ह अभिलाषा जी,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर।
आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंउच्च तकनीक के साथ स्नेह और अपनत्व की ऊर्जा खो रहे हैं।सच में साधन इन्सान को मदारी की भान्ति नचा रहे हैं।अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति और प्रतिभा को गँवाता जा रहा है।मार्मिक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए बधाई प्रिय अभिलाषा जी 🙏
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति, अभिलाषा दी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
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