इस जग सच्ची प्रीति
देख दशा हरि ध्यान लगाए,
कैसी कुटिल कुरीति।
युग-युग से बस धोखा खाए,
इस जग सच्ची प्रीति।
कैसे कानन कैसे मधुवन,
उजड़ी-उजड़ी प्रकृति।
जयचंदों ने जीती बाजी,
चली यही बस रीति।
सज्जन ढूँढे ठौर-ठिकाना,
अधर्म की है नीति
युग-युग से बस धोखा खाए,
इस जग सच्ची प्रीति।
देख दशा हरि ध्यान लगाए,
कैसी कुटिल कुरीति।
जो मैं सोचूँ क्या तुम राधे,
वही सोच रही हो।
मन मंथन कर जग-जीवन से,
अमृत खोज रही हो।
रीते-रीते हिय घट सारे,
दिखे न प्रेम प्रतीति।
युग-युग से बस धोखा खाए,
इस जग सच्ची प्रीति।
देख दशा हरि ध्यान लगाए,
कैसी कुटिल कुरीति।
तुम बिन सूना मेरा जीवन
ये जग तो न माने
छलिया कहता मुझको निशदिन
और मिले बस ताने
मोह बंधा जग सत्य न देखे
छल-छंद बने नीति।
देख दशा हरि ध्यान लगाए,
कैसी कुटिल कुरीति।
अभिलाषा चौहान
जो मैं सोचूँ क्या तुम राधे,
जवाब देंहटाएंवही सोच रही हो।
मन मंथन कर जग-जीवन से,
अमृत खोज रही हो।
रीते-रीते हिय घट सारे,
दिखे न प्रेम प्रतीति।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति सखी 🙏
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसच्ची प्रीत करने वाले का अंजाम तो लैला-मजनूँ के जैसा या फिर सोहनी-महीवाल के जैसा होता है.
सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंतुम बिन सूना मेरा जीवन
जवाब देंहटाएंये जग तो न माने
छलिया कहता मुझको निशदिन
और मिले बस ताने
मोह बंधा जग सत्य न देखे
सुंदर भक्ति भाव को नमम
छल-छंद बने नीति।
सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आपका सादर
जवाब देंहटाएंthnks
जवाब देंहटाएंKampus Hijau
Kampus Hijau
Thanks for sharing useful information
जवाब देंहटाएंUMJ berkemajuan