देखूं आठों याम
यमुना तट पे सघन कुंज में,
बैठे राधेश्याम।
नील-पीत की मनहर आभा,
देखूँ आठों याम।
राधा अपनी सुध-बुध भूली,
रंगी कृष्ण के रंग,
कृष्ण पुकारें राधा-राधा,
मन में बसी उमंग।
सबकी बाधा दूर करें वे
मनमोहन घनश्याम।
नील-पीत की मनहर आभा
देखूँ आठों याम।
तीनों लोक हुए बलिहारी,
देख छवि वो न्यारी।
ध्यान लगा के ऐसे बैठे,
सुध न रही हमारी।
पत्ता-पत्ता देख रहा है,
लीला राधा-श्याम।
नील-पीत की मनहर आभा
देखूं आठों याम।
मनमोहन माधव मुरलीधर
हर लो जन की पीर
काल कठोर कपट कालिमा
बिखरी है चहुँओर
आस लगाकर तुमको ताके
जीवन हो अभिराम
नील पीत की मनहर आभा
देखूं आठों याम।
अभिलाषा चौहान
आपकी लिखी रचना सोमवार 12 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंमनमोहन माधव मुरलीधर
जवाब देंहटाएंहर लो जन की पीर
काल कठोर कपट कालिमा
बिखरी है चहुँओर
आस लगाकर तुमको ताके
जीवन हो अभिराम
नील पीत की मनहर आभा
देखूं आठों याम।
.. सभी के मन की मनुहार करता सुंदर, मनहर प्रार्थना गीत । बहुत बधाई और आभार सखी ।
राधा अपनी सुध-बुध भूली,
जवाब देंहटाएंरंगी कृष्ण के रंग,
कृष्ण पुकारें राधा-राधा,
मन में बसी उमंग।
सबकी बाधा दूर करें वे
मनमोहन घनश्याम।
वाह!!!
राधा कृष्ण के रंग में रंगा भक्ति से सरोवार नायाब सृजन ।
मनमोहन माधव मुरलीधर
जवाब देंहटाएंहर लो जन की पीर
काल कठोर कपट कालिमा
बिखरी है चहुँओर
आस लगाकर तुमको ताके
जीवन हो अभिराम
नील पीत की मनहर आभा
देखूं आठों याम।
आहा…🙏🙏
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंप्रेम और भक्ति में डूबे सुंदर उद्गार , लीलाधर की सुंदर छवि आँखों में समा गई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन सखी।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend
सहृदय आभार आपका सादर
हटाएंबहुत ही सुन्दर गीत
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