श्वास अंतिम दौर में
भूलता अस्तित्व अपना
खो रहा इस ठौर में
राह से भटका हुआ हूँ
बन गया कुछ और मैं।।
कल्पनाएँ ले उड़ी जब
सब लगा सुंदर बड़ा
पँख ने फिर साथ छोड़ा
भूमि पर आकर पड़ा
आँख मूँदे जी रहा था
करता कहाँ गौर मैं।।
हो गया पतझड़ शुरू अब
ठूँठ केवल बच रहा
लू जलाती गात को जब
ताप कब जाए सहा
खो गई आवाज मन की
गूँजते इस शोर में।।
साँझ ढलती कह रही है
चक्र पूरा हो चला
काल पासा फेंकता है
सोच अपना अब भला
आ कभी फिर मिल जरा तू
श्वास अंतिम दौर में।।
अभिलाषा चौहान
आपकी लिखी रचना सोमवार 22 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंकुशल अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंह्रदय उद्देवेलित करती रचना!!बहुत सुन्दर ❤️
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अनुपमा जी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंसुंदर नवगीत सखी।
जवाब देंहटाएंअलग सी व्यंजनाएं।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुंदर नवगीत सखी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण लयात्मक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसाँझ ढलती कह रही है
जवाब देंहटाएंचक्र पूरा हो चला
काल पासा फेंकता है
सोच अपना अब भला
आ कभी फिर मिल जरा तू
श्वास अंतिम दौर में।।.. सुंदर सराहनीय गीत ।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसाँझ ढलती कह रही है
जवाब देंहटाएंचक्र पूरा हो चला
काल पासा फेंकता है
सोच अपना अब भला
आ कभी फिर मिल जरा तू
श्वास अंतिम दौर में।।
वाह!!! बहुत सुंदर!!
सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई सादर
हटाएंभूलता अस्तित्व अपना
जवाब देंहटाएंखो रहा इस ठौर में
राह से भटका हुआ हूँ
बन गया कुछ और मैं।।///
एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय अभिलाषा जी।
सहृदय आभार प्रिय सखी रेणु जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई सादर
हटाएंबहुत सुंदर अद्भुत 👌👌🙏💐🙏
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार प्रिय दीपिका सादर
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
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