सवैया छंद सीखते हुए कुछ पदों का सृजन । सुमुखि सवैया 121 121 121 12,1 121 121 121 12 1-सिय वियोग चले रघुवीर तुणीर लिए, मन में सिय का बस़ ध्यान रहे। अनेक विचार उठे मन में,हर आहट वे पहचान रहे। प्रयास करें पर कौन सुने,वन निर्जन से सुनसान रहे। दिखे सब सून प्रसून दुखी,मन पीर वियोग निशान रहे। ========================= 2-राम वन गमन चले रघुवीर सुवीर बडे,मुख चंद्र समान लगे जिनका। सहोदर संग प्रवीण दिखे,बस रूप अनूप लगे उनका। सजे पुर बाग प्रदीप जले,मन मोहित मोद लगे छनका। कहें सब आज तुणीर धरे, ऋषि वेश सुवेश लगे इनका। ========================= गंगोदक सवैया गंगोदक सवैया को लक्षी सवैया भी कहा जाता है। गंगोदक या लक्षी सवैया आठ रगणों से छन्द बनता है। केशव, दास, द्विजदत्त द्विजेन्द्र ने इसका प्रयोग किया है। दास ने इसका नाम 'लक्षी' दिया है, 'केशव' ने 'मत्तमातंगलीलाकर'। 212 212 212 212, 212 212 212 212 1-गोपी विरह देखती राह हैं गोपियाँ राधिका,श्याम भूले नहीं याद आते रहे। आज सूनी पड़ी गाँव की ये गली,पीर देखो बढ़ी बात कैसे कहे। प्रीत झूठी पड़ी मीत ऐसा मिला
आपकी लिखी रचना सोमवार 22 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंकुशल अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंह्रदय उद्देवेलित करती रचना!!बहुत सुन्दर ❤️
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अनुपमा जी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सादर
हटाएंसुंदर नवगीत सखी।
जवाब देंहटाएंअलग सी व्यंजनाएं।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुंदर नवगीत सखी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण लयात्मक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसाँझ ढलती कह रही है
जवाब देंहटाएंचक्र पूरा हो चला
काल पासा फेंकता है
सोच अपना अब भला
आ कभी फिर मिल जरा तू
श्वास अंतिम दौर में।।.. सुंदर सराहनीय गीत ।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंसाँझ ढलती कह रही है
जवाब देंहटाएंचक्र पूरा हो चला
काल पासा फेंकता है
सोच अपना अब भला
आ कभी फिर मिल जरा तू
श्वास अंतिम दौर में।।
वाह!!! बहुत सुंदर!!
सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई सादर
हटाएंभूलता अस्तित्व अपना
जवाब देंहटाएंखो रहा इस ठौर में
राह से भटका हुआ हूँ
बन गया कुछ और मैं।।///
एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय अभिलाषा जी।
सहृदय आभार प्रिय सखी रेणु जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई सादर
हटाएंबहुत सुंदर अद्भुत 👌👌🙏💐🙏
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार प्रिय दीपिका सादर
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
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