टूटे पंख पखेरू रोया


फूलों के सपने नित देखे

सदा रहे जो खोया-खोया

कर्महीनता सिर चढ़ बोले

शूलों को निज पथ में बोया।।


बातों के नित महल बनाए

सदा सत्य को मारे ठोकर

मन के द्वार बंद कर बैठा

पछताता फिर अवसर खोकर

तरुणाई आलस में बीती

सदा रहा वह सोया-सोया

कर्महीनता सिर चढ़ बोले

शूलों को निज पथ में बोया।।


उड़ता फिरता नीलगगन में

थोथे अपने गाल बजाता

भार बना सबके जीवन पर

सफल कहाँ कब वह हो पाता

नीलांबर से धूल चाटता

टूटे पंख पखेरु रोया

कर्महीनता सिर चढ़ बोली

शूलों को निज पथ में बोया।।


जैसी करनी वैसी भरनी

रीति सदा से यही चली है

भूलों पर जो धूल डाल दे

छाती पर बस मूँग दली है

श्रम से मुख को रहा मोड़कर

भाग्य सदा उसने है धोया

कर्महीनता सिर चढ़ बोले

शूलों को निज पथ में बोया।।


अभिलाषा चौहान 




         

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार 18 अगस्त, 2022 को    "हे मनमोहन देश में, फिर से लो अवतार"  (चर्चा अंक-4525)
       
    पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. सहृदय आभार आदरणीया दी सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर और प्रेरक सृजन सखी । आपको कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ एवं बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी सादर आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

      हटाएं
  4. सकारात्मक भावों की प्रेरणा देती सराहनीय रचना । जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी सादर आपको भी कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

      हटाएं
  5. वाह!बहुत सुंदर सृजन सखी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम,
    रोटी-कपड़ा-घर न हो, पर चहिये आराम.

    जवाब देंहटाएं

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