लड़ रहा ऐसे समय से....
सत्य निर्बल हो चला है
आज बढ़ते इस अनय से
टूट बिखरे स्वप्न सारे
मनुजता रोती अदय से।
चीख घुटती प्राण की तब
नीतियाँ जब धूल होती
बोलता बस मात्र पैसा
भूख ऐसे शूल बोती
ढाल तिनके की बनाकर
लड़ रहा ऐसे समय से।
कौन सुनता बात किसकी
कौन किसकी पीर बाँटे
स्वार्थ सिर चढ़ बोलता है
मारता जब भाग्य चाँटे
जीतता है वो समर भी
जो खड़ा रहता अभय से।
कीच में खिलते कमल भी
दे रहे हैं सीख न्यारी
काल कितना भी भयंकर
कामनाएँ नहीं हारी
साहसी बनकर चला चल
कर्म रत हो बस हृदय से।
अभिलाषा
वाह!!!
जवाब देंहटाएंयथार्थ बयां करता लाजवाब नवगीत।
सहृदय आभार आदरणीया सादर
हटाएंसार्थक रचना । 👌👌👌👌 बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-07-2022) को चर्चा मंच "तृषित धरणी रो रही" (चर्चा अंक 4499) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय सादर
हटाएंकौन सुनता बात किसकी
जवाब देंहटाएंकौन किसकी पीर बाँटे
स्वार्थ सिर चढ़ बोलता है
मारता जब भाग्य चाँटे
जीतता है वो समर भी
जो खड़ा रहता अभय से।
..जी बिलकुल सटीक लिखा है आपने ।
सहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंसुन्दर सीख
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंबहुत सुंदर सृजन सखी।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर
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