शून्य सारी भावनाएँ
नयन निर्झर शुष्क से,
शून्य सारी भावनाएँ।
रिक्त जीवन शेष बाकी,
मिल रही हैं यातनाएँ।
हे पथिक !सुन लो समय की,माँग अब कहती यही है,
क्षीण क्षणभंगुर जगत की,सोच बदलो तो सही है।
कर्म कर्तव्य जान अपना,सार वेदों का यही है,
पंथ पर कंटक चुभे तो,वेदना अंतर बही
है।
कल्पना कुसुमित हुई जब,
जागती बस कामनाएँ।
रिक्त जीवन शेष बाकी,
भोगते हो यातनाएँ।
कामिनी सी कल्पना को,सत्य में साकार करना,
दीन दुर्बल दुर्गुणों को,शीश पर अपने न धरना।
जीतना है ये समर तो,शौर्य साहस मन बसे,
सत्य शांति और करुणा,प्रेम ही अंतर बसे।
तुम जगत आधार बिंदु,
तोड़ दो सब वर्जनाएँ।
नियति को बदलो, उठो,
क्यों सहो अवहेलनाएँ?
धूल धुसरित स्वप्न सारे,अस्त होते सूर्य से,
आग अंतर में जलाओ,फूँक कर इस तूर्य से।
मृग मरीचिका से भ्रमित हो,राह से भटको नहीं,
अटल संकल्प ले चलो अब,शीश यूँ पटको नहीं।
राह रोकेंगी विपत्ति,
चमकती ये चंचलाएँ।
मौन मन मंथन करो,
बदलेंगी ये धारणाएँ।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
कामिनी सी कल्पना को,सत्य में साकार करना,
जवाब देंहटाएंदीन दुर्बल दुर्गुणों को,शीश पर अपने न धरना।
जीतना है ये समर तो,शौर्य साहस मन बसे,
सत्य शांति और करुणा,प्रेम ही अंतर बसे।...बहुत सुंदर प्रेरक रचना ।
सहृदय आभार जिज्ञासा जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-12-2021 ) को 'आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा' (चर्चा अंक 4277 )' पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंजीतना है ये समर तो,शौर्य साहस मन बसे,
जवाब देंहटाएंसत्य शांति और करुणा,प्रेम ही अंतर बसे।
तुम जगत आधार बिंदु,
तोड़ दो सब वर्जनाएँ।
नियति को बदलो, उठो,
क्यों सहो अवहेलनाएँ?
बहुत ही प्रेरणादायक और उम्दा रचना....
एक-एक पंक्ति बहुत ही बेहतरीन और प्रेरणादायक है
सहृदय आभार मनीषा जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई
हटाएंराह रोकेंगी विपत्ति,
जवाब देंहटाएंचमकती ये चंचलाएँ।
मौन मन मंथन करो,
बदलेंगी ये धारणाएँ।
बहुत ही सुन्दर प्रेरणा दायक सृजन सखी,एक एक शब्द में ओज भरा है, बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाई आपको इस सृजन के लिए,सादर नमस्कार
सहृदय आभार सखी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई
हटाएंवाह!बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी,सादर
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