ये तो सोचा न था...!!
मास्क
दो गज की दूरी
अपनों से दूर रहने की मजबूरी
कैद में किलकारी
मित्रों की यारी
ऐसे भी होंगे दिन
ये तो सोचा न था...!!
पिंजरों में कैद
पंछी की तरह फड़फड़ाते
छिन चुकी स्वच्छंदता का
शोक मनाते
अवसाद में डूबे
अपनों के जाने का
मातम मनायेंगे
ये तो सोचा न था...!!
चार कंधों की सवारी
होगी न नसीब
कोई अपना रहेगा न करीब
दमघोटूँ बीमारी
जिंदगी जिससे हारी
डर और बेरोजगारी
ये तो सोचा न था...!!
अदृश्य दानव से
उगेगी रक्तबीजों की फसल
मुर्दों का भी होगा तोल
घुटती चीखों की आवाज में
खनकेंगे सिक्को के बोल
पैसे से साँसों का लगेगा मोल
हर रिश्ते की खुलेगी पोल
कोई नहीं बोलेगा मीठे बोल
ये तो सोचा न था...!!
कृष्ण पक्ष सा जीवन चक्र
उगाएगा चाँद या
आएगी अमावस
सूखे आँसुओं के समंदर में
उठेगी टीस
हर बात की लगेगी फीस
ये तो सोचा न था...!!
अभिलाषा चौहान
इतनी मायूसी अच्छी नहीं अभिलाषा जी ! एक पुराना नग्मा याद आ गया -
जवाब देंहटाएंगम की अंधेरी रात में, दिल को न बेक़रार कर,
सुबह ज़रूर आएगी, सुबह का इंतज़ार कर !
हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंसच .... ऐसा कुछ नहीं सोचा था ... लेकिन करना पड़ रहा ....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआशा का दामन थाम कर रखना है, अभी तो बहुत दूर तक चलना है, अवश्य एक न एक दिन उजाला होगा और गमों की यह रात गुजर जाएगी
जवाब देंहटाएंअभूतपूर्व संकट !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूरज अवश्य चमकेगा ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक दृश्य प्रस्तुत करती आपकी रचना दिल को छू गई, आशा ही जीवन है,उसी की डोर थाम के रखनी है, अपको सादर शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही। हम सब कभी नहीं सोचे थे कि ऐसी परिस्थिति कभी आएगी। परिस्थितिनुसार बढ़िया रचना।
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