बदलेगी ये समय की धारा
बीत जाएँगी ये भी घड़ियाँ
डर-डर के मत जीना हो
गहन तिमिर की भले हो बेला
अमृत आस का पीना हो।
छट जाएँगे बादल काले
सुख का सूरज निकलेगा
धरती के आँगन में फिर से
हर्ष का पंछी चहकेगा
अडिग अविचल हो करो सामना
निज विश्वास न झीना हो।।
मानवता पर संकट आया
मिलकर दूर भगाना है
मन मंदिर के बुझे दीप को
फिर से आज जलाना है
जीवन पुष्पों सा महकेगा
दुख कंटक जब बीना हो।।
बदलेगी ये समय की धारा,
काल पाश ढीला होगा।
बरसेगी फिर से खुशियाँ भी
दुख का मुख पीला होगा।
चल उठ जा और जी ले जीवन
गरल घूँट क्यों पीना हो।।
अभिलाषा चौहान
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंउम्दा 👌
चल उठ जा और जी ले जीवन। यही सच है आज का भी और सदा का भी। क्या पता कल हो ना हो। और जहाँ तक घड़ियों का सवाल है, वे बीत तो जाती हैं अभिलाषा जी लेकिन जो कुछ उन घड़ियों में हो चुका होता है (अच्छा चाहे बुरा), वह फिर अनहुआ नहीं हो सकता है। उसकी यादें (मीठी चाहे कड़वी) मन में रह जाती हैं हमेशा के लिए।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी कोई रचना बुधवार , 17 मई 2021 को साझा की गई है ,
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।संगीता स्वरूप
वाह!सखी ,खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंबीत जाएँगी ये भी घड़ियाँ
जवाब देंहटाएंडर-डर के मत जीना हो
गहन तिमिर की भले हो बेला
अमृत आस का पीना हो//
बहुत ही सार्थक सृजन , मन में आशा का संचार करता हुआ | क्योकि जब अच्छा समय बदला है तो कठिन दौर भी कहाँ टिकेगा | इसे भी जाना होगा | इस आशावादी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं अभिलाषा जी |
बदलेगी ये समय की धारा,
जवाब देंहटाएंकाल पाश ढीला होगा।
बरसेगी फिर से खुशियाँ भी
दुख का मुख पीला होगा।
चल उठ जा और जी ले जीवन
गरल घूँट क्यों पीना हो।।
समय की धारा बदलेगी... सकारात्मक भावो से सजा लाजवाब सृजन
वाह!!!