चंद साँसों के लिए
चंद साँसों के लिए
तड़पते लोग
कैसे जीतेंगे ये जंग
जब लाशों के ढेर पर
लालची मुर्दे
बनाते सपनों के महल
सिक्कों की खनक में डूबे
कर रहे सौदेबाजी
जुगाड़ की प्रवृति
कालाबाजारी
जमाखोरी में लिप्त
ये भ्रष्टाचारी मुर्दे
भारी है इन साँसों पर
साँसों के व्यापारी
जोंक के समान
चूसते रक्त मानवता का
हतप्रभ,जड़,असहाय से
अपनों के लिए
गिड़गिड़ाते लोग
इन मुर्दों से
माँगते भीख
या बेचकर खुद को
तिल-तिल मर रहे
ताकि मिल जाए चंद साँसें
नाउम्मीद होती मानवता में
साँस और आस को
सहारा देते कुछ लोग
ज़िंदा है अभी
जो लड़ रहे हैं इन मुर्दों से
ताकि अभिशापित मानवता
जीत जाए जंग....!
अभिलाषा चौहान
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-०४-२०२१) को 'मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे'(चर्चा अंक- ४०४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सहृदय आभार सखी 🙏🌹 सादर
हटाएंजब लाशों के ढेर पर
जवाब देंहटाएंलालची मुर्दे
बनाते सपनों के महल
सिक्कों की खनक में डूबे
कर रहे सौदेबाजी...
समाज की मरती संवेदना का जीवंत चित्रण।
सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर
हटाएंअभिलाषा जी इस समय तो वो लोग भगवान हैं जो इंसानियत का चिराग जला रहे हैं और इंसानियत के काम कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🙏🌹 सादर
हटाएंमानवता सच ही अभिशापित हो चुकी है ...कुछ लोग हैं जो इस अभिशाप से बचाने का काम कर रहे ... समसामयिक रचना ..
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹 सादर
हटाएंमार्मिक रचना, अब भी निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग हैं, ईश्वर जल्दी ही इस आपदा से हमारी रक्षा करे
जवाब देंहटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना दी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंसुन्दर ह्रदयस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया 🙏 सादर
हटाएंबहुत सही सखी सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🙏 सादर
हटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर पाप और पुण्य अब कहाँ है और कौन मानता है।यथा राजा तथा प्रजा
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