जैसे सब कुछ डोल रहा था


नेत्र प्रवाहित नदिया अविरल

नेह हृदय कुछ तोल रहा था

तिनका-तिनका दुख में मेरे

जैसे सब कुछ डोल रहा था।


अम्बर पर बदली छाई थी

दुख की गठरी लादे भागे

नयनों से सावन बरसे था

विरह आग ने गोले दागे

प्यासा-प्यासा जीवन मेरा

चातक बन कर बोल रहा था।


कस्तूरी को वन-वन ढूँढे,

पागल मृग सा मेरा मन था।

मृगतृष्णा में उलझा-उलझा

सड़ता गलता मेरा तन था

खोया-खोया जीवन मेरा

जीवन-धन को ढूँढ रहा था।।


धरती से लेकर अंबर तक

सबको अपना मान लिया था

सच्चाई से मुख मोड़ा था

दुख को गठरी बाँध लिया था,

थोड़ा-थोड़ा सुख पाया वह

जीवन में विष घोल रहा था।।




अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अभिलाषा दी।

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  2. नेह हृदय कुछ तोल रहा था
    तिनका-तिनका दुख में मेरे
    जैसे सब कुछ डोल रहा था।
    .... पंक्तियाँ जो प्रभावित किए बिना न रह सकी।।।।।
    हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर अभिव्यक्ति सखी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. कस्तूरी को वन-वन ढूँढे,

    पागल मृग सा मेरा मन था।

    मृगतृष्णा में उलझा-उलझा

    सड़ता गलता मेरा तन था

    बस इसीमें मन उलझा रहता ... सुन्दर रचना ..

    जवाब देंहटाएं

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