सुन्दर सपना सलोना सा
नैनों के दर्पण में झूले
सुंदर सपन सलोना सा
सुख के अंकुर लगे फूटने
दुख भी लगता बौना सा।।
भावों की उर्वरता बढ़ती
देती मन को आस नयी
रोप रहा है खुशहाली को
बीत गई सो बात गयी
हिय आँगन में उछल रहा है
हर्ष किसी मृगछौना सा।।
स्वेद-लहू से सींच रहा है
जीवन की फुलवारी को
शीश खड़े संकट कितने
सदा बचाता बाड़ी को
माटी की ममता में पलता
नभ भी लगे बिछौना सा।।
बीज रोपता संस्कारों के
दिया प्रेम का पानी वो
भावी को मुट्ठी में जकड़े
श्रम की लिखे कहानी जो
और धरा के आँचल में फिर
बिखर रहा है सोना सा।।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
अभिलाषा दी,किसान तो धरा के आंचल पर सोना बिखेरता ही है। लेकिन ये सोना बिखेरने वाला ही रात को भूखे पेट सोता है यही कड़वी सच्चाई है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!सखी ,बेहतरीन 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ,भावपूर्ण सृजन दी,सुंदर बिम्बों से सजा👏👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१९-०३-२०२१) को मनमोहन'(चर्चा अंक- ४०११) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
सादर नमस्कार।
हटाएंकृपया १९ को २० पढ़े।
किसान के जीवन की गाथा
जवाब देंहटाएंभावों को सुंदरता से बाँधा ।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंभावों की उर्वरता बढ़ती
जवाब देंहटाएंदेती मन को आस नयी
रोप रहा है खुशहाली को
बीत गई सो बात गयी
हिय आँगन में उछल रहा है
हर्ष किसी मृगछौना सा।।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब नवगीत
जवाब देंहटाएंबीज रोपता संस्कारों के
दिया प्रेम का पानी वो
भावी को मुट्ठी में जकड़े
श्रम की लिखे कहानी जो
और धरा के आँचल में फिर
बिखर रहा है सोना सा।। आशा का संचार करती सुंदर रचना ।
आशा जी आपसे आग्रह है की समय मिले तो कभी मेरे गीत ब्लॉग पर पधारें ,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएं*आशा/अभिलाषा जी
जवाब देंहटाएं