और कितना भागना है


भाव मन के मर चुके हैं

और कितना भागना है

चित्त भय कंपित हुआ है

और कितना साधना है।।


मोह का जंजाल ऐसा

जाल पंछी फड़फड़ाए

काल का आघात कैसा

प्राण जिसमें भड़भडाए

सूखता हिय का सरोवर

प्रेम किससे माँगना है।।


झेलते लू के थपेड़े

छाँव ढूँढे ठूँठ नीचे

शूल पग को छेदते हैं

देखते सब आँख मींचे

ये छिदा तन बींध डाला

और कितना बाँधना है।।


बैठ कर नदिया किनारे

प्यास से जब बिलबिलाए

हाथ में बस रेत आई

क्रोध से फिर तिलमिलाए

लक्ष्य ओझल हो चला है

और सागर लाँघना है।।


अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक



टिप्पणियाँ

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    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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  2. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. सहृदय आभार सखी 🌹🙏 सादर परिस्थिति वश में आपकी प्रतिक्रिया का उचित समय पर जबाव नहीं दे सकी,सादर

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  4. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीया 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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    1. सहृदय आभार आदरणीया 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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  8. वा अभ‍िलाषा जी, एक अंधी दौड़ पर व‍िराम लगाने को कहती कव‍िता...बैठ कर नदिया किनारे

    प्यास से जब बिलबिलाए

    हाथ में बस रेत आई...वाह

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    1. सहृदय आभार आदरणीया 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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  9. सूखता हिय का सरोवर

    प्रेम किससे माँगना है।।

    बहुत ही सुंदर सृजन सखी

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    1. सहृदय आभार सखी 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर

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