आ गए ऋतुराज फिर से
आ गये ऋतुराज फिर से
प्रीत पायल छनछनाए
झूमती वसुधा प्रफुल्लित
हाथ कंगन खनखनाए।।
काननों में मोर नाचे
कोंपले फिर लहलहाई
फूलती सरसों बसंती
हरितिमा ले अंगड़ाई
आ गया मकरंद देखो
राग कोयल ने सुनाए।।
वृक्ष से लतिका लिपटकर
हर्ष से जब झूम उठती
ओस की बूँदें धरा पर
तृण-तृण को चूम उठती
फिर कली महकी वहाँ पर
गीत भँवरा गुनगुनाए।।
फूलते टेसू लगे यों
दहकते हों आग से वन
प्रेम लेता फिर हिलोरें
तीर सा छोड़े जब मदन
घुल उठा सौरभ पवन में
गात सबके झनझनाए।।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बेहतरीन नवगीत दी 👌👌
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार बहना 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित और वासन्ती गीत।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर
हटाएंबहुत सुंदर सृजन सखी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🙏🙏 सादर रचना आपकी प्रतिक्रिया पाकर सफल हुई।सादर
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