ये भारत के वीर


प्राण हथेली पे लिए

चौकस रहते वीर

गर्मी बर्षा शीत में

होते नहीं अधीर।


हर्षित मात वसुंधरा

पाकर ऐसे रत्न

अरिदल चकनाचूर हो

करते ऐसे यत्न

शौर्य शक्ति के पुंज ये

जैसे गंगा नीर।


शोभित है इनसे धरा

चमकें बनकर सूर्य

शेरों सी हुंकार से

बजे विजय का तूर्य।

त्याग समर्पण भाव से

हरते जन की पीर।


हिमगिरि की हों चोटियाँ

या हो तपती रेत

आएँ कितनी आंधियाँ

रहते सदा सचेत

देश-प्रेम के गीत हों

और बसंती चीर।


अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक


टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 27 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर।
    72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
      गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं

      हटाएं

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