है नवल जीवन सवेरा
धुंध अब छँटने लगी है
लालिमा संदेश लाई
राह भी दिखने लगी है
आस किरणें जगमगाई।
टूटती सब श्रृंखलाएँ
जागते मन भाव ऐसे
फूटते अंकुर धरा से
हर्ष से जो झूमते से
नींद से अब जागती सी
ये सुबह नवरीत लाई।।
सत्य का अब सूर्य चमका
कालिमा है मुँह छिपाए
भाव जो सोए हुए थे
आज फिर से गुनगुनाए।
कल्पना ने पंख खोले
प्राण वीणा झनझनाई।।
रागिनी अब गूँजती सी
झूमता मन आज मेरा
जीतता विश्वास बोला
हैं नवल जीवन सवेरा
आज खुशियाँ दीप बनके
द्वार मेरे झिलमिलाई।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
बहुत बहुत सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (03-01-2021) को "हो सबका कल्याण" (चर्चा अंक-3935) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नववर्ष-2021 की मंगल कामनाओं के साथ-
हार्दिक शुभकामनाएँ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंनववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय और सुख-समृद्धि दायक हो 🙏
बहुत खूब लिखा अभिलाषा जी, टूटती सब श्रृंखलाएँ
जवाब देंहटाएंजागते मन भाव ऐसे
फूटते अंकुर धरा से
हर्ष से जो झूमते से
नींद से अब जागती सी
ये सुबह नवरीत लाई।।...वाह
सहृदय आभार आदरणीया 🙏 सादर
हटाएंनववर्ष आपके और आपके परिवार के लिए मंगलमय और सुख-समृद्धि दायक हो 🙏
वाह सखी बहुत सुंदर नवगीत नव के सर्वांगीण में।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष मंगलमय हो आपको एवं आपके सकल परिवार को।
सहृदय आभार सखी 🌹🙏 सादर
हटाएंनववर्ष की अनंत शुभकामनाएं 💐💐
मंत्रमुग्ध करती प्रभावशाली लेखन व अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंनववर्ष मंगलमय हो