गूँज शहनाई हृदय से
भाव देते ताल लय से
गूँजती है आज सरगम
देह तंत्री के निलय से।।
पंखुड़ी खिलती अधर की
मंद स्मित डोलती सी
नैन पट पर लाज ठहरी
मौन है कुछ बोलती सी
स्वप्न स्वर्णिम भोर जैसे
देखती है नेत्र द्वय से।।
इंद्रधनुषी सी छटा अब
दिख रही चहुँ ओर बिखरी
धड़कनों की रागिनी में
कामनाएँ आज निखरी
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय से।।
है नवल जीवन सवेरा
हंस चुगते प्रीत मोती
प्राण की उर्वर धरा पर
भावनाएँ बीज बोती
खिल उठा उपवन अनोखा
चहकता है अब उभय से।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
बहुत सुन्दर गीत !
जवाब देंहटाएंबच्चान जी के गीतों की याद आ गयी !
सहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सखी,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंबहुत सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹
हटाएंप्रभावशाली! लेख के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
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