कोई कैसे खिलखिलाए
छाँव की अब बात झूठी
धूप कैसी चिलचिलाए
आग में सब सुख जले जब
कोई कैसे खिलखिलाए।
कौन देखे दर्द किसका
स्वप्न पंछी मर रहें हैं
भावनाएँ शून्य होती
घाव से मन भर रहें हैं
नेत्र कर चीत्कार रोए
नाव जीवन तिलमिलाए।
खोखला तन है थका सा
माँगता दो घूँट पानी
स्वार्थ का संसार कैसा
ठोकरों से बात जानी
रात काली घेर बैठी
प्राण कैसे बिलबिलाए।
आँधियों का दौर कैसा
तोड़ता सारे घरोंदे
शूल हँसते आज देखे
फूल कैसे देख रौंदे
और मंजिल खो गई जब
आस कैसे झिलमिलाए।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार १ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
छाँव की अब बात झूठी
जवाब देंहटाएंधूप कैसी चिलचिलाए
आग में सब सुख जले जब
कोई कैसे खिलखिलाए।
...चिंतनपरक भावपूर्ण सृजन। शुभकामनाएं आदरणीया अभिलाषा जी।
सहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंगुरु नानक देव जयन्ती
और कार्तिक पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
हटाएंआपको भी हार्दिक शुभकामनाएं 💐
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-12-20) को "अपना अपना दृष्टिकोण "'(चर्चा अंक-3902) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंकौन देखे दर्द किसका
जवाब देंहटाएंस्वप्न पंछी मर रहें हैं
भावनाएँ शून्य होती
घाव से मन भर रहें हैं..हृदय स्पर्शी सृजन आदरणीय दी।
सादर
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
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