चेतना कैसे जगाओ
सुप्त हैं संवेदनाएँ
चेतना कैसे जगाओ
बन चुके पाषाण हैं जो
पीर उनको मत सुनाओ।
बोलती ये लेखनी भी
आज हिम्मत हारती है
प्राण नीरस हो गए हैं
प्रीत भी धिक्कारती है
सो रहें हैं भाव मन के
गीत कैसे गुनगुनाओ।।
बात मन की सुन सके जो
है भला अब कौन ऐसा
दूरियों को पाट दे जो
प्रश्न ये अब शून्य जैसा
मौन की भाषा पढ़े जो
कौन पाठक है दिखाओ।।
आज हिय में है उदासी
आस भी मरती हुई है
वेदना हलचल मचाती
बात ये तो अनछुई है
हो चुकी निस्तेज सी जो
वह कलम कैसे चलाओ।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर
हटाएंवाह!सखी ,बहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबात मन की सुन सके जो
जवाब देंहटाएंहै भला अब कौन ऐसा
दूरियों को पाट दे जो
प्रश्न ये अब शून्य जैसा
मौन की भाषा पढ़े जो
कौन पाठक है दिखाओ।।
बहुत सुंदर रचना !!!
सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹 सादर
हटाएंवेदना हलचल मचाती
जवाब देंहटाएंबात ये तो अनछुई है
हो चुकी निस्तेज सी जो
वह कलम कैसे चलाओ।।
बेहद मार्मिक सृजन सखी,सादर नमन आपको
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंबात मन की सुन सके जो
जवाब देंहटाएंहै भला अब कौन ऐसा
दूरियों को पाट दे जो
प्रश्न ये अब शून्य जैसा
मौन की भाषा पढ़े जो
कौन पाठक है दिखाओ।।
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब सृजन
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंरोचक, साझा की गई जानकारी उपयोगी है।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
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