जिसे देख छाता उल्लास
पर्वतों के कपाट खोल सद्यस्नाता रश्मियाँ झाँकती घूँघट की ओट से शनैं शनै पग बढ़ाती वधू सी धानी पांवड़ों पर छोड़ती पगों की छाप लिए स्वर्ण कलश करती गृहप्रवेश देख उस नवौढ़ा को लेता अंगड़ाई जीवन करता अगुवाई बिखर जाता स्वर्ण सुख चहुंओर खनकते कंगनों बजते नुपुरों से गूँज उठता घर का हर कोना उसके रूप के उजास से देदीप्यमान घर आंगन उसकी मुस्कराहट से खिलते सुमन बिखरता मंकरद उस कामिनी की झलक पाने को आतुर झरोखों से झांकते नयन वृक्ष भी संगीतज्ञ से छेड़ देते ताल पंछी करते स्वागत गान मनोरम वातावरण में आती वह शनै शनै वधू सी छिड़कती मंगल कुमकुम खेतों में झूमती फसलों को हौले-हौले सहलाती गाती गुनगुनाती गीत जिसे देख छाता उल्लास। अभिलाषा चौहान
सहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹 सादर
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन प्रिय अभिलाषा जी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दीदी 🙏🌹
हटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर और मार्मिक सृजन सखी ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹 सादर
हटाएंआ अभिलाषा जी, बहुत सुंदर सृजन!
जवाब देंहटाएंनैन गगरी छलछलाती
टूटते इन हौसलों से।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं। हार्दिक साधुवाद!
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
जी आदरणीय आपकी प्रतिक्रियाएं मेरे लिए उत्साह जनक है। सादर
हटाएंयह एक बड़ी सलाह है! मैंने वास्तव में इस लेख का आनंद लिया।
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