लाख समान जली लंका
अहंकार सिर चढ़कर बोले
पतन बजाता है डंका
सुख सारे फिर जले जलन में
घेरे बैठी आशंका
भरी तिजोरी ताले लटके
भूख मिटाए नहीं मिटी
कामी लोभी पदवी पाए
करुणा हिय में कहाँ उठी
पाप घड़ा भरते-भरते तब
छलक उठा कैसी शंका।।
दुखियों के आँसू में देखे
जिसने सपने सतरंगी
स्वेत-श्याम को एक करे फिर
कपट-घृणा बनती संगी
सूर्य शिखर चढ़कर फिर डूबे
सत्य मार्ग होता बंका
मृगतृष्णा में डूब गया जो
डाले पर्दा आँखों पर
क्षणभंगुर जीवन को भूला
समझे सबकुछ अमर अजर
जले लंक के सब परकोटे
लाख समान जली लंका।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
पतन बजाता है डंका
सुख सारे फिर जले जलन में
घेरे बैठी आशंका
भरी तिजोरी ताले लटके
भूख मिटाए नहीं मिटी
कामी लोभी पदवी पाए
करुणा हिय में कहाँ उठी
पाप घड़ा भरते-भरते तब
छलक उठा कैसी शंका।।
दुखियों के आँसू में देखे
जिसने सपने सतरंगी
स्वेत-श्याम को एक करे फिर
कपट-घृणा बनती संगी
सूर्य शिखर चढ़कर फिर डूबे
सत्य मार्ग होता बंका
मृगतृष्णा में डूब गया जो
डाले पर्दा आँखों पर
क्षणभंगुर जीवन को भूला
समझे सबकुछ अमर अजर
जले लंक के सब परकोटे
लाख समान जली लंका।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
बेहतरीन! लाजवाब! अप्रतिम
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹
हटाएंबेहतरीन! लाजवाब! अप्रतिम
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंयह मेरा पहली बार Im यहाँ आ रहा है। और मुझे आपके द्वारा लिखे गए लेखों से पहले ही प्यार हो गया है
जवाब देंहटाएंइस उत्तम लेख के लिए आपका धन्यवाद।
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