टूटा-टूटा मन का दर्पण

टूटा-टूटा मन का दर्पण
जाने क्या-क्या करा गया
बिखर रहे माला के मनके
जीते-जी ज्यूँ मरा गया।।

प्रेम समर्पण त्याग धूल से
आँधी में उड़ जाते हैं
स्वार्थ उतारे केंचुल अपनी
घोर अँधेरे छाते हैं
इक सपनों का महल बनाया
नींव खोखली धरा गया
बिखर रहे माला के मनके
जीते-जी ज्यूँ मरा गया।।

अहम सर्प सा फन फैलाए
डसता नित संबंधों को
समझौते का जाल बिछाए
लिखता है अनुबंधों को
भूकंपी सी आहट देकर
झटका घर को गिरा गया
बिखर रहे माला के मनके
जीते-जी ज्यूँ मरा गया।।

सूना जीवन सूना आँगन
लटके मकड़ी के जाले
ऊपर से जो उजले-उजले
हृदय रहे उनके काले
एक दशानन हावी होकर
अच्छाई को हरा गया
बिखर रहे माला के मनके
जीते-जी ज्यूँ मरा गया।।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏 सादर

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  2. मैं वास्तव में आपके दृष्टिकोण से प्यार करता हूं। अच्छा कार्य!

    जवाब देंहटाएं
  3. कृपया अधिक बार लिखें क्योंकि मैं वास्तव में आपके ब्लॉग से प्यार करता हूं। धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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