आखिर कब तक ??
इस ब्रह्मांड में
जीवन से परिपूर्ण
हरित-नीलाभ्र
ओ मेरी पृथ्वी!!
तुझसे ही है मेरा वजूद
अपने हरितांचल में दिया दुलार
तू है तो मैं हूँ
ओ मेरी पृथ्वी!!
मैं कृतघ्न
भूल तेरे उपकार
तेरी देह को करता छलनी
बाँट दिया खंड-खंड
बोने लगा काँटे
नफ़रत विद्वेष के
उजाड़ता तेरा रूप
धूल-धुसरित कर
छीनता तेरा जीवन
हूँ नहीं अनभिज्ञ
स्वार्थी हूँ मैं बड़ा
अपने जीवन के लिए
छीनता तुझसे
तेरे अनमोल रत्न
जहर घोलता मैं
दूषित करता पर्यावरण
सहनशीला,ममतामयी
करती क्षमा अक्षम्य अपराध
ओ मेरी पृथ्वी!!
आखिर कब तक??
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
जीवन से परिपूर्ण
हरित-नीलाभ्र
ओ मेरी पृथ्वी!!
तुझसे ही है मेरा वजूद
अपने हरितांचल में दिया दुलार
तू है तो मैं हूँ
ओ मेरी पृथ्वी!!
मैं कृतघ्न
भूल तेरे उपकार
तेरी देह को करता छलनी
बाँट दिया खंड-खंड
बोने लगा काँटे
नफ़रत विद्वेष के
उजाड़ता तेरा रूप
धूल-धुसरित कर
छीनता तेरा जीवन
हूँ नहीं अनभिज्ञ
स्वार्थी हूँ मैं बड़ा
अपने जीवन के लिए
छीनता तुझसे
तेरे अनमोल रत्न
जहर घोलता मैं
दूषित करता पर्यावरण
सहनशीला,ममतामयी
करती क्षमा अक्षम्य अपराध
ओ मेरी पृथ्वी!!
आखिर कब तक??
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
उपयोगी रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 20 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया 🙏🙏 सादर
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सखी,सादर नमन
सही कहा कब तक क्षमा करेगी धरती हमारे अक्षम्य अपराधों को...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक सृजन।
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
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