कटी प्याज सी खुशबू यादें
यादों की वो कील पुरानी
ठुकती है अंतस में जाकर
लुटी धरोहर बड़ी सुहानी
धनी हुए थे जिसको पाकर
नियति नटी ने नाच नचाया
कठपुतली से बने खिलौने
काल प्रभंजन बनकर आया
टूट गए सब सपने सलौने
हाथ हमारे रीते-रीते
काम नहीं आए करुणाकर
लुटी---------------------।।
हृदय मरुस्थल पसरा ऐसे
जैसे उजड़ा कोई कानन
कोई छाया मिली न ऐसी
जिससे फिर शीतल होता मन
आँखों में छाई वीरानी
नहीं दिखे फिर से कुसुमाकर
लुटी----------------------।।
नयन बदरिया जमकर बरसे
बूँद-बूँद को तरसे सावन
तटबंधों को तोड़ चुका है
भावों का ये सागर पावन
कटी प्याज सी खुशबू यादें
ठहर गई पलकों में आकर
लुटी---------------------।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
जवाब देंहटाएंहृदय मरुस्थल पसरा ऐसे
जैसे उजड़ा कोई कानन
कोई छाया मिली न ऐसी
जिससे फिर शीतल होता मन
आँखों में छाई वीरानी
नहीं दिखे फिर से कुसुमाकर
लाजवाब हृदयस्पर्शी नवगीत
अद्भुत बिम्ब
वाह!!!
सहृदय आभार सखी 🌹🙏
जवाब देंहटाएंहृदय मरुस्थल पसरा ऐसे
जवाब देंहटाएंजैसे उजड़ा कोई कानन
कोई छाया मिली न ऐसी
जिससे फिर शीतल होता मन
आँखों में छाई वीरानी
नहीं दिखे फिर से कुसुमाकर
लुटी----------------------।।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना प्रिय अभिलाषा जी । 👌👌🙏🙏
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
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