महक रहा है कस्तूरी सा
कोरे कागज सी ये काया
इसका करले अभिनंदन
महक रहा है कस्तूरी सा
अंश प्रभो का कर वंदन
काया कपट कुंडली उलझी
काम क्रोध नित तड़पाए
मद में अंधा होकर घूमे
मन माया में भरमाए।
हिय घट में नवनीत छुपा है
उसका करले अब मंथन
महक रहा है कस्तूरी सा
अंश प्रभो का कर वंदन।।
जीवन का उद्देश्य भुलाकर
भटका जग के कानन में
व्यसन अहेरी जाल बिछाता
लोभ लुभाता आनन में
जीव बना पिंजरे का पंछी
करता रहता नित क्रंदन
महक रहा है कस्तूरी सा
अंश प्रभो का कर वंदन।।
हीरे सा अनमोल जन्म ये
अहंकार में सब भूला
कालकूट का बनके आदी
फिरता है फूला-फूला
लोभकपट अब व्यसन रोग से,
मुक्ति युक्ति का कर चिंतन।
महक रहा है कस्तूरी सा
अंश प्रभो का कर वंदन।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
हिय घट में नवनीत छुपा है
जवाब देंहटाएंउसका करले अब मंथन
महक रहा है कस्तूरी सा
अंश प्रभो का कर वंदन।।
अप्रतिम भाव पिरोये हैं आपने सृजन में ...अत्यंत सुन्दर ।
सहृदय आभार सखी 🌹🌹🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुन्दर अनुप्रास से सज्जित आध्यात्मिक भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹
हटाएंबहुत सुंदर। प्रशंसा से परे।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 31 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंक्या बात है ! बहुत सुंदर, सार्थक और शिक्षाप्रद
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंवाह!बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीय दीदी.
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंबहुत सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीया दीदी 🙏🌹
हटाएंमहक रहा है कस्तूरी सा
जवाब देंहटाएंअंश प्रभो का कर वंदन।।
अद्भुत सृजन सखी
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
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