उसी क्षितिज के पास

क्षितिज पर छाई लालिमा
लाई है संदेश
समय रहा कहाँ एकसा
करो न किंचित क्लेश।।

मन में हो विश्वास अगर
मुट्ठी में आकाश
साहस संकल्प साथ हो
पूरी होगी आस।
जीवन के रणक्षेत्र में
बदलो अपना वेश
समय रहा कहाँ एकसा
करो न किंचित क्लेश
क्षितिज---------------।।

देख क्षितिज पर सूर्य-चंद्र
करते हैं बसेरा
सुख-दुख जीवन में आकर
बदले भाग्य तेरा
परिवर्तन का चक्र चले
बदले है परिवेश
समय रहा कहाँ एकसा
करो न किंचित क्लेश
क्षितिज------------------।।

रजनी तम को भेद रही
तारा रूपी आस
आए ऊषा  मुस्काती
उसी क्षितिज के पास
दोनों आकर मिलती हैं
रखती कब है द्वेष
समय रहा कहाँ एकसा
करो न किंचित क्लेश
क्षितिज---------------।।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर रचना अभिलाषा जी।

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  2. प्रेणना दायक रचना, अति सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह सखी अभिलाषा जी।संदेशपरक प्रेरणादायी रचना।बेहतरीन

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर नलगीत अभिलाषा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दीदी.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. रजनी तम को भेद रही
    तारा रूपी आस
    आए ऊषा मुस्काती
    उसी क्षितिज के पास
    दोनों आकर मिलती हैं
    रखती कब है द्वेष
    समय रहा कहाँ एकसा
    करो न किंचित क्लेश
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन...।

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  8. सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर

    जवाब देंहटाएं

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