कोरोना का कहर

सवैया छंद(आठ भगण)

        ( १)
देखत देखत बीत रहे दिन,चैन नहीं मिलता मन को अब।
रोग फँसा जग जीवन सोचत,काल कराल पता जकड़े कब।
हाथ मले सब देखत बाहर,छूट मिले कब काम करें तब।
पेट भरें तब चैन पडें तन, दौलत भी कुछ पास रहे जब।
        (२)
पैदल-पैदल भाग रहे सब,गाँव मिले तब चैन पड़े अब।
देश विदेश लगे सब देखत,पीर नहीं समझे जन की जब।
भूख चली हरने सब संकट,भाग बुरे निज पीर कहे कब।
नाग समान डसे अब लोगन,रोग बुरा जन जीवन पे अब।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-05-2020) को   "शराब पीयेगा तो ही जीयेगा इंडिया"   (चर्चा अंक-3893)    पर भी होगी। -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें।  
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. वाह!!!
    समसामयिक स्थिति का वर्णन सवैया छन्द में!!!!
    बहुत लाजवाब।

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  3. सुंदर सृजन सखी ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीय दीदी 👌👌

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  5. वाह सुंदर सृजन अभिलाषा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏

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