साधना भी होगी पूरी

जल उठेगा दीप फिर से
तम का मिटना है जरूरी।
हृदय में संकल्प हो तो
साधना भी होगी पूरी।

ठंडी पड़ी इस राख में भी
कोई चिंगारी तो होगी।
फूँक से सुलगेगी जब ये
चेतना झंकृत तो होगी।
प्राण में फिर राग होगा
विराग से होगी दूरी।

निराशा के बादलों से
सूर्य आशा का दिखेगा
कालिमा के मध्य से जब
चाँद भी खुलकर हँसेगा
जिंदगी फिर पूर्ण होगी
लग रही है जो अधूरी।

हार कर चुप बैठ जाना
काम मानव का नहीं है
संकटों से पार पाना
लक्ष्य जीवन का यही है
साँस सरगम फिर बजेगी
रह गई थी जो अधूरी।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक


टिप्पणियाँ

  1. सकारात्मक भावों का संचार करती अति उत्तम भावाभिव्यक्ति ।
    सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई सखी .

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्मीद जगाती बहुत सुंदर रचना, अभिलाषा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. हारना कायर की निशानी है ... उम्मीद भरी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  4. ऋतु-चक्र सा मानव जीवन ... हर रात की सुबह .. सकारात्मक सोच ..

    जवाब देंहटाएं
  5. ये निराशा के बादल हमारी हिम्मत और उम्मीद से कपूर के समान उड़न छू हो जाते हैं। प्रेरणादायी पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  6. निराशा के बादलों से
    सूर्य आशा का दिखेगा
    कालिमा के मध्य से जब
    चाँद भी खुलकर हँसेगा
    जिंदगी फिर पूर्ण होगी
    लग रही है जो अधूरी।
    वाह!अभिलाषा जी आपके नवगीत की बात ही अलग है....बहुत ही लाजवाब लेखन।
    अनंत शुभकामनाएं एवं नमन।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह !लाजवाब सृजन आदरणीय दीदी... दिनकर जी की झलक लगी आप के सृजन में
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!!बहुत ही प्रेरणादायक रचना सखी ।

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्दा प्रस्तुति !
    सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏
      स्वस्थ व सुरक्षित रहे।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम