सूना जीवन
कोमल कलियाँ पुष्पित कानन
भ्रमर देख कर ललचाया
आकर्षण में उलझा-उलझा
फिरता रहता भरमाया।।
हृदय बाँध के चला पोटली
भावों से हीरे-मोती
आशाओं के दीप जलाता
प्रीत ढँके मुँह को सोती
टूटे मन के टुकड़े बीने
नयन नीर से भर आया।
विरह वेदना सिर चढ़ बोली
शूलों से आघात मिले
फूलों की शैया थी झूठी
पतझड़ के दिन साथ चले
देकर पाषाणों सी ठोकर
प्रेम कहाँ पर ले आया।।
रिक्त भावना सूना जीवन
उजड़ गए सारे सपने
अंगारे सा दहका तन-मन
काल-भुजंग लगा डसने
भिक्षुक बनकर घूमा जग में
सबने मिलकर ठुकराया।
अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14-4-2020 ) को " इस बरस बैसाखी सूनी " (चर्चा अंक 3671) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सहृदय आभार सखी 🌹🙏
हटाएंविरह वेदना सिर चढ़ बोली
जवाब देंहटाएंशूलों से आघात मिले
फूलों की शैया थी झूठी
पतझड़ के दिन साथ चले
देकर पाषाणों सी ठोकर
प्रेम कहाँ पर ले आया।।
....विरह वेदना को एक नए रूप में आपने ऐसे पिरोया है कि देखते व पढते बस मन मन गया। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया अभिलाषा जी।
आपको रचना पसंद आई और उस पर इतनी विस्तृत टिप्पणी दी उसके लिए आपका सहृदय आभार आदरणीय 🙏🙏
हटाएंबहुत ही लाजवाब नवगीत
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सहृदय आभार सखी 🌹🙏
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