काल व्याल सा
काल व्याल सा खड़ा सामने
करता पल-पल वार।
कैसी विपदा आई मानव,
प्रकृति खा रही खार।
अपनी करनी से ही तूने
विष प्रकृति में घोला।
देती है संदेशा प्रतिपल,
न बन इतना भोला।
रूप बिगाड़ा उसका तूने
कर ले ये स्वीकार।
मानवता पर संकट आया,
नयनों के पट खोल।
नियमों का पालन अब कर ले,
इधर-उधर मत डोल
सुनी नहीं यदि तूने अब भी,
समय की ये पुकार।
मनमानी क्यों करता फिरता,
क्या है तेरे पास।
खोल पिटारा बैठा यम है,
नित हो रहा विनाश।
जीवन बंदी घर के अंदर,
होती तेरी हार।।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
करता पल-पल वार।
कैसी विपदा आई मानव,
प्रकृति खा रही खार।
अपनी करनी से ही तूने
विष प्रकृति में घोला।
देती है संदेशा प्रतिपल,
न बन इतना भोला।
रूप बिगाड़ा उसका तूने
कर ले ये स्वीकार।
मानवता पर संकट आया,
नयनों के पट खोल।
नियमों का पालन अब कर ले,
इधर-उधर मत डोल
सुनी नहीं यदि तूने अब भी,
समय की ये पुकार।
मनमानी क्यों करता फिरता,
क्या है तेरे पास।
खोल पिटारा बैठा यम है,
नित हो रहा विनाश।
जीवन बंदी घर के अंदर,
होती तेरी हार।।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअपनी करनी से ही तूने
जवाब देंहटाएंविष प्रकृति में घोला।
देती है संदेशा प्रतिपल,
न बन इतना भोला।
रूप बिगाड़ा उसका तूने
कर ले ये स्वीकार।
वाह!!!
आज के परिपेक्ष्य को बयां करता समसामयिक नवगीत।
सहृदय आभार सखी 🌹🌹
हटाएंअपनी करनी से ही तूने
जवाब देंहटाएंविष प्रकृति में घोला।
देती है संदेशा प्रतिपल,
न बन इतना भोला।
रूप बिगाड़ा उसका तूने
कर ले ये स्वीकार।
सुंदर और सामयिक सृजन।
सहृदय आभार विकास जी🙏🙏
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