हिंदी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या-2

आदरणीय मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत श्री संजय कौशिक'विज्ञात'जी और सखी नीतू ठाकुर'विदुषी'जी चाहते हैं कि मैं इस समस्या पर और कार्य करूँ।करना भी चाहती हूँ,पर सोचती हूँ क्या मेरे लिख देने मात्र से कोई क्रांति संभव है??
मेरे विचार से इसका उत्तर"नहीं"है।
आज लाखों लोग सोशल मीडिया पर साहित्य सेवा में लीन हैं।कई एप्प भी हिंदी साहित्य लेखन के लिए इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।हिंदी प्रतिलिपि,स्टोरीमिरर, वेबदुनिया इत्यादि। मैं हिंदी प्रतिलिपि और स्टोरीमिरर दोनों पर लिखती हूँ।वहाँ रहस्य ,रोमांच,प्रेम , सामाजिक,देश, आध्यात्मिक आदि विविध विषयों पर अच्छी रचनाएँ लिखी जा रहीं हैं।
अच्छी-खासी पाठक संख्या है वहाँ।लाखों लोग जुड़े हुए हैं और रचनाओं को पसंद कर रहें हैं,इसके लिए मैं एप्प संचालकों को धन्यवाद देना चाहती हूँ, लेकिन वहाँ भी यही
समस्या है जो मुझे दुखी करती है भाषा में अशुद्ध शब्दों का प्रयोग।पाँच सितारा लेखक
की भाषा में अशुद्धियों की भरमार देख मन
दुखी हो उठा।इस पर प्रश्न भी उठाया़। बहस भी हुई,पर निष्फल रही।वहाँ लिखना महत्वपूर्ण है,कैसे लिखा जा रहा ये महत्त्वपूर्ण नहीं है ।
माना भाव प्रधान होते हैं रचना में,लेकिन उसके शरीर का क्या? क्या रोगी शरीर में प्राण प्रसन्न रहता है।लेखक का दायित्व है कि यदि वह साहित्य सेवा कर रहा है तो साहित्य के दोनों पक्षों पर ध्यान दे-भाव और शिल्प। दोनों सशक्त होने चाहिए,क्योंकि-
" साहित्य जनता की चित्तवृत्तियों का द्योतक होता है"यह कथन आ.रामचंद्र शुक्ल का है। साहित्य में हित का भाव भी निहित है"हितेन सह सहितम् तस्य भाव साहित्यम्"अर्थात जिसमें हित का भाव निहित हो ,वह साहित्य है ,तो जो भी लिख रहा है,उसके लेखन का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य है।इस उद्देश्य की पूर्ति में भाषा का अहित कदापि नहीं होना चाहिए।भाषा मनुष्य के परस्पर भाव-विनिमय का साधन है।इसका अपना इतिहास है।संस्कृत,पालि ,प्राकृत,अपभ्रंश का अपना साहित्य है,अपना सौंदर्य है।इसके बाद काव्य की भाषा ब्रज और अवधी बनी।
भारतेंदु काल तक ब्रजभाषा ही काव्य की भाषा बनी रही।इस युग में श्रीधर पाठक ने खड़ी बोली में काव्य रचना का प्रयास किया ।खड़ी बोली को काव्य के अनुकूल नहीं माना जाता था।इसे 'कड़ी बोली' माना जाता था।यह मेरठ और इसके आसपास बोली जाने वाली भाषा थी।चूंकि इसका उद्भव इन
भाषाओं के बाद हुआ था। इसलिए इनके शब्द इसमें समाहित होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। देश में मुगल शासकों का साम्राज्य होने से अरबी-फारसी की शब्दावली भी खड़ी बोली में समाहित हो गई।इस प्रकार इसके दो रूप हो गए।एक शुद्ध संस्कृत निष्ठ खड़ी बोली और दूसरा अरबी-फारसी शब्दों से युक्त खड़ी बोली।आज हम इन सब अंतरों को भुला बैठे हैं।और तो और हम तो मात्रा ज्ञान से भी अपरिचित हैं।जब कोई व्यक्ति सीता को सिता लिख देता है तो कितना बड़ा अनर्थ करता है ,ये शायद उसे पता नहीं होगा।सीता
जनकनंदिनी है और सिता मिश्री को कहते हैं।एक मात्रा का फेरबदल अर्थ का अनर्थ कर देता है।

क्रमशः


अभिलाषा चौहान
सादर समीक्षार्थ 🙏🌷





टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर एवं तथ्य पूर्वक विस्तार से दी गई जानकारी ,हम हिंदी भाषियों के लिए है।
    आपको सादर नमन दी।

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  2. प्रिय सखी अभिलाषा जी आप कथन से पूर्ण सहमत हूँ कि सिर्फ लेख लिखने से तुरंत परिणाम नही मिलेगा पर कहीं न कहीं से शुरुवात होनी जरूरी। आपका प्रयास और लेखन दोनों सराहनीय है और हर साहित्यकार इस समस्या से मुक्ति पाना चाहता है।कोई भी प्रयास विफल नही जाता ...आप की वजह से आज हम इस विषय पर चर्चा कर रहे है यह उसका प्रमाण है। ढेर सारी शुभकामनाएं माँ शारदा आपको भरपूर यश दे 🙏🙏🙏

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  3. आपका यह लेख बहुत सुंदर लेख है। निःसंदेह विचारों में क्रांतिकारक सिद्ध हो सकता अशुद्ध लेखन/ अशुद्ध उच्चारण अहिन्दी भाषी क्षेत्रों में तो अधिकतर देखा जा सकता है। एक गंभीर विषय पर आवाज उठाई है आपने सच में इस समस्या का समाधान बिना गहन चिंतन के असम्भव है । पर सबसे बड़ी हर्ष की बात यह है कि आपको अपने कर्तव्य का बोध है। सुंदर लेख की बधाई 💐💐💐

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  4. बहुत।ही सार्थक जानकारी आपकी । हम जो लिखें पहली प्राथमिकता तो शुद्धता की होनी ही चाहिए । आप और हम मिलकर प्रयास करते रहें । क्रांति आएगी ही । बधाई आपने बहुत ही अच्छा लिखा है ।

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌷 आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणादायक है। आपका कहना सत्य है अगर हम सब मिलकर प्रयास करें तो
      परिवर्तन की आशा की जा सकती है। हिंदी भाषा
      के उत्थान के लिए सभी की प्रतिबद्धता आवश्यक है।आपका पुनः आभार

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  5. सार्थक चिंतन देता आपका ये लेख हिन्दी के उत्थान में प्रतिबद्ध सभी साहित्यकारों की पसंद बनेगा ।
    आप एक असाधारण कार्य को हाथ में लेकर नये प्रतिमान स्थापित करें ,आप अपना कार्य दृढ़ संकल्प से करते रहें क्षणांश भी सुधार होगा तो वो भी उपलब्धि ही समझे ,अपना कार्य निष्ठापूर्वक करते रहें ।
    साधुवाद।
    शुभकामनाएं।

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. सार्थक चिंतन। कई बार वर्तनी की गलतियाँ हो ही जाती हैं। मेरे साथ खुद ये होता है। अपने लिखे को इतने बार पढ़ चुका होता हूँ कि वर्तनी गलत भी हो तो दिमाग में सही ही लगती है। मैं ऐसे मौकों में घर वालों को लिंक भेजता हूँ जो काफी गलतियाँ पकड़ लेते हैं और मैं उन गलतियों को सुधार देता हूँ।

    प्रतिलिपि जैसे एप्लीकेशन में भी यही दिक्कत है। उधर प्रूफ रीडर नहीं है। लेखक लिखते हैं और छाप देते हैं। कुछ प्रूफ रीडिंग करते हैं तो भी कुछ न कुछ शब्द गलत रह जाते हैं। 
    हाँ, कई लोग टाइप करके सीधा बिना प्रूफ रीडिंग करके ही उधर डाल देते हैं तो उन्हें थोड़ा संजीदगी दिखलाने की जरूरत है।

    आपने अच्छी पहल की है। आभार।  

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  8. बहुत सुंदर और सार्थक लेख लिखा दी👌

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  9. बहुत ही सुन्दर और सार्थक लेख। वर्तमान में यह बहुत बड़ी समस्या है। अशुद्ध वर्तनी और अशुद्ध व्याकरण भाषा के लिए प्राणघातक है।

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  10. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-02-2020) को "हिन्दी भाषा और अशुद्धिकरण की समस्या" (चर्चा अंक 3606) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

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  11. वर्तनी की अशुद्धि लेखक की सृजनात्मकता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है जैसा कि अंत मे आपने उदाहरण स्वरूप सीता और सिता शब्दो के मध्य का अंतर बताया..।
    आपने लेख में इस ओर ध्यानाकर्षित किया ये बहुत अच्छी पहल है..मैं भी ध्यान रखूँगी अपनी लेखन संबंधित अशुद्धि को..
    धन्यवाद।

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  12. ज्ञानवर्धक लेख सखी ,मैं हिंदी की छात्रा नहीं रही हूँ इसलिए मेरी भी अशुद्धियाँ बहुत होती हैं , सुधार करने के लिए प्रयासरत हूँ ,सादर नमन

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