कह मुकरी छंद

पल-पल जो साथी बन रहता
चलता साथ नहीं कुछ कहता
उसने ऐसा मन भरमाया
हे सखि साजन? ना सखि साया।

करूँ प्रतीक्षा निशदिन उसकी,
दिखता जब खुशियाँ हैं मिलती।
मिले मुझे तो करता चेतन,
का सखि साजन?ना सखि वेतन।

जिसे देख कर हँसती हूँ मैं,
जिसके कारण सजती हूँ मैं।
जिसको सब कर देती अर्पण।
का सखि साजन?ना सखि दर्पण।

पीत वसन पहने मुस्काए,
रूप सलोना मन को भाए।
शोभा उसकी सदा अनंत।
का सखि साजन?ना सखि वसंत।

मुझे देख कर जो खुश होता,
साथ सदा वह जगता- सोता।
प्रीत हमारी चढ़े परवान।
का सखि साजन?ना सखि श्वान।


अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर अभिलाषा जी !
    पहली मुकरी में 'उसने ऐसा मन भरमाया' की जगह - 'उसने हरदम साथ निभाया' होता तो और आनंद आता.
    मुकरी की अंतिम पंक्ति में जो सरप्राइज़ एलीमेंट होता है, वह आपकी सभी मुकरियों में है.
    अमीर खुसरो आपको स्वर्ग से शाबाशी दे रहे होंगे.

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹 जो आपने मेरी मुकरियों की इतनी तारीफ कर दी। मैंने तो बस एक कोशिश की है।

      हटाएं
  2. बहुत सुंदर रचना,अभिलाषा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. अति सुंदर रचना सखी , सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर कहमुकरी...
    लाजवाब
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर कह मुकरी 👌👌👌 बहुत बहुत बधाई प्रथम प्रयास के सफलता की 💐💐💐

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  6. बहुत सुन्दर कह मुकरी प्रिय अभिलाषा!

    जवाब देंहटाएं

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