जली तीली कहीं कोई !!
जली तीली कहीं कोई,
धुआँ उठता कहीं पर है।
जले अरमाँ किसी के है,
किसी के सपने जलते हैं।
जली भावों की महफिल है,
कसक बाकी बची दिल में।
लगी छोटी सी चिंगारी,
पड़ा ये दिल है मुश्किल में।
सुलगती आग को यूँ तुम,
बुझाओगे भला कैसे?
सोयी है प्रीत लंबी नींद,
जगाओगे भला कैसे?
ये चिंगारी धधकती है,
चमन अब राख होता है।
किसी का प्यार जलता है,
किसी का घर ही जलता है।
जली तीली कहीं कोई,
जले सपने किसी के हैं।
जला कर राख जो कर दें,
वो अपने किसी के हैं।
भला अपनों से भी कोई,
यहाँ जंग जीत पाया है।
बदलते देखा जमाने को,
ठगा-सा खुद को पाया है।
बची बाकी पड़ी ये राख,
किरण उम्मीद की ढूँढो।
बची मुर्दों की ये दुनिया,
यहाँ जिंदगी को तुम ढूँढो।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक।
धुआँ उठता कहीं पर है।
जले अरमाँ किसी के है,
किसी के सपने जलते हैं।
जली भावों की महफिल है,
कसक बाकी बची दिल में।
लगी छोटी सी चिंगारी,
पड़ा ये दिल है मुश्किल में।
सुलगती आग को यूँ तुम,
बुझाओगे भला कैसे?
सोयी है प्रीत लंबी नींद,
जगाओगे भला कैसे?
ये चिंगारी धधकती है,
चमन अब राख होता है।
किसी का प्यार जलता है,
किसी का घर ही जलता है।
जली तीली कहीं कोई,
जले सपने किसी के हैं।
जला कर राख जो कर दें,
वो अपने किसी के हैं।
भला अपनों से भी कोई,
यहाँ जंग जीत पाया है।
बदलते देखा जमाने को,
ठगा-सा खुद को पाया है।
बची बाकी पड़ी ये राख,
किरण उम्मीद की ढूँढो।
बची मुर्दों की ये दुनिया,
यहाँ जिंदगी को तुम ढूँढो।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक।
जब अपने ही षड्यंत्र रचते हो , लाक्षागृह निर्मित करते हो, तो कटुशब्दों की एक चिंगारी ही काफी है, माचिस की क्या जरूरत है दी ?
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं सार्थक रचना दी, नमन।
सहृदय आभार भाई 🙏🌷सदा स्वस्थ रहें।
हटाएंसार्थक प्रस्तुति अभिलाषा जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिलाषा जी !
जवाब देंहटाएंनिराशा से भरे अनेक बोलो के बाद आशा के केवल दो शब्द भी कितनी शांति देते हैं !
सहृदय आभार आदरणीय 🙏 आशा और उम्मीद
हटाएंही जीवन से लेकर जीवन के अंत तक व्यक्ति की सच्ची मित्र होती है, इन्होंने दामन छोड़ा तो मानो खुशियों से नाता टूटा।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-01-2020) को " दर्पण मेरा" (चर्चा अंक - 3590) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
.....
अनीता लागुरी 'अनु '
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंवाह!सखी ,बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी,सादर
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🌷
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ जनवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय आभार सखी सादर 🙏🌹
हटाएंबेहतरीन सृजन सखी अभिलाषा जी।बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर 🙏🌹
हटाएंबची बाकी पड़ी ये राख,
जवाब देंहटाएंकिरण उम्मीद की ढूँढो।
बची मुर्दों की ये दुनिया,
यहाँ जिंदगी को तुम ढूँढो।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी ,सादर नमस्कार
सहृदय आभार सखी सादर 🙏🌹
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