नवगीत:प्रथम प्रयास

भूचालो की बुनियादों पर
है सपनों का घर।
पल-पल संकट खड़ा सामने
जीना है डरकर।

सत्ता के गलियारे झूठे,
वादें है बस ऊंचे-ऊंचे।
खड़ी बाए मुंह मंहगाई,
किस्मत भी है आँखें मीचे।
ठोकर खाता फिरे आदमी
दिखे नहीं है दर।
भूचालों की बुनियादों पर
है सपनों का घर।

छोटी-छोटी सी आशाएं,
छोटे-छोटे सपने लेकर।
तरस रहा है आज आदमी
होती कैसे अब गुजर-बसर।
डूब रहा है सूरज उसका,
सब खुशियां लेकर।
भूचालों की बुनियादों पर
है सपनों का घर।

सुख के ऊपर दुख की छाया,
गहन निशा तम जीवन पाया।
उम्मीदों की झोली खाली,
सब कुछ है बस खाली-खाली
पिसता रहता सदा आदमी
जीता है मरकर।
भूचालों की बुनियादों पर
है सपनों का घर।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 16.01.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3582 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 16 जनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ख़ूब अभिलाषा जी !
    व्यवस्था के गाल पर एक साथ इतने तमाचे !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🌷 आपको मेरी रचना पसंद आई सृजन सार्थक हुआ।इसी तरह आप हमारा उत्साहवर्धन करते रहिए 🙏🌷

      हटाएं
  4. आपका प्रथम प्रयास भी बहुत ही लाजवाब है सखी
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।

    जवाब देंहटाएं
  5. सहृदय आभार आदरणीय 🙏🌷 उत्साहवर्धन करती आपकी टिप्पणी से प्रसन्नता हुई।

    जवाब देंहटाएं

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