सड़कों का हाल
सड़कें मेरे देश की,कैसा इनका हाल।
टूटी-फूटी ये रहे,लोग रहें बेहाल।
लोग रहें बेहाल,गिरे गड्ढों में गाड़ी।
मरते कितने लोग,बनी हैं जैसे खाड़ी।
कहती अभि निज बात,चलो तो दिल है धड़के।
लेती जीवन लील, बनी गड्ढा ये सड़कें।
२
सड़कों का देखो सखी, बहुत बुरा है हाल।
जनता धक्के खा रही, मरे किसी का लाल।
मरे किसी का लाल, किसी के घर हैं उजड़े।
नेता सुने न बात, हाल सड़कों के बिगड़े।
कहती अभि निज बात, लगे अंकुश लड़कों पर।
हुए निरंकुश देख, तेज वाहन सड़कों पर।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बिलकुल सही सखी ,सुंदर एवं यथार्थ सृजन ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर
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