औकात

कठिन समय पर ही सदा,लगता है आघात।
मित्र,बंधुवर की सदा,दिख जाती औकात।
दिख जाती औकात,काट वे कन्नी जाते।
संकट में जब जान,फटी वे जेब दिखाते।
कहती अभि निज बात,पता चलता है पल-छिन।
अपनों की पहचान, करा देता समय कठिन।

सत्ता के पड़ फेर में,भूले अपनी औकात।
सूली पर नित चढ़ रहे,जनता के जज्बात।
जनता के जज्बात,फिरे वह मारी-मारी।
भ्रष्टाचार अपार, करें कालाबाजारी।
कहती अभि निज बात,वादे का फेंके पत्ता।
भटके युवा समाज,लगे बस प्यारी सत्ता।

आया कैसा वक्त ये,टूट रहे परिवार।
स्वार्थ के पड़ फेर में, अपनों से ही रार।
अपनों से ही रार,करें अपनी मनमानी।
भार बने मां -बाप,बहे आंखों से पानी।
भूल गए औकात,असल ये रूप दिखाया।
अपना सुख बस याद,कैसा वक्त ये आया।


अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!!!!
    लाजवाब कुण्डलियाँ अभिलाषा जी !
    नवांकुर के मंच पर भी और यहाँ भी ....मैं तो दंग रह गयी हूँ आपकी सृजनशीलता देखकर...भावों का संसार बसा है आपके मन में...शत शत नमन आपको और आपकी लेखनी को....।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम