हार की जीत लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
शुष्क बंजर धरा है जो,
खिला दें फूल उसमें भी।
दिलों को जोड़ दें दिल से,
नयी एक प्रीत लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
रूढ़ियों में कभी बंधकर,
न मानवता कभी सिसके।
खुलें अब द्वार हृदय के,
चलो वो नींव रखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
दुखों के साए में घिरकर,
भूले हैं जो जीवन को।
जगा दें आस उनमें भी,
चलो वो रीत लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
धधकती आग जो मन में,
बने क्यों राख वो यूं हीं।
भड़कने दें उसे यूं ही,
नया आगाज लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
हार की जीत लिखते हैं।
शुष्क बंजर धरा है जो,
खिला दें फूल उसमें भी।
दिलों को जोड़ दें दिल से,
नयी एक प्रीत लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
रूढ़ियों में कभी बंधकर,
न मानवता कभी सिसके।
खुलें अब द्वार हृदय के,
चलो वो नींव रखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
दुखों के साए में घिरकर,
भूले हैं जो जीवन को।
जगा दें आस उनमें भी,
चलो वो रीत लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
धधकती आग जो मन में,
बने क्यों राख वो यूं हीं।
भड़कने दें उसे यूं ही,
नया आगाज लिखते हैं।
चलो एक गीत लिखते हैं,
हार की जीत लिखते हैं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
शुष्क बंजर धरा है जो,
जवाब देंहटाएंखिला दें फूल उसमें भी।
दिलों को जोड़ दें दिल से,
नयी एक प्रीत लिखते हैं।
दिलों में उम्मीद जगाता भावपूर्ण रचना सखी ,सादर
सहृदय आभार सखी सादर🙏🌷😊
हटाएंदुःखों के सारे में घिरकर,
जवाब देंहटाएंभूलों हैं जो जीवन को।
जगा दें आस उनमें भी,
चलो वो रीत लिखते हैं।
वाह आस की री जगाने वाली बेहतरीन रचना।बेहद खूबसूरत।
सहृदय आभार सखी सादर
हटाएंअभिनंदन आपका🙏🌷